योग, वेद और संस्कृति का त्रिवेणी संगम:- योग विज्ञान विभाग व नमामि गंगे के संरक्षण में……प्राचीन शिव मंदिर परिसर में गूंजे वैदिक मंत्र

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार एवं राज्य स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे उत्तराखण्ड के संयुक्त तत्वावधान में पूरे प्रदेशभर में योग शिविरों के साथ-साथ वैदिक संवाद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसी श्रृंखला में आज अल्मोड़ा के प्राचीन शिव मंदिर कसार देवी परिसर में एक विशेष आयोजन किया गया जिसमें गंगा, वेद, पुराण और नदी सभ्यता पर आधारित संवाद, वैदिक मंत्रोच्चार और योग सत्र का अद्भुत संगम देखने को मिला।

कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथियों योगाचार्य सूरज बिष्ट, लल्लन कुमार सिंह और रॉबिन हिमानी द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ। मुख्य अतिथि को अंग वस्त्र भेंट कर सम्मानित किया गया।
मुख्य अतिथि योगाचार्य सूरज बिष्ट ने कहा: “गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। वेदों में गंगा को जीवनदायिनी, पाप नाशिनी और मोक्ष प्रदायिनी कहा गया है। आज जब हम योग और संस्कृति के साथ गंगा की आराधना करते हैं, तो हम न केवल पर्यावरण संरक्षण की बात कर रहे हैं, बल्कि आत्म-संस्कृति की ओर भी लौट रहे हैं।”
वेद मंत्र: “आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ताना ऊर्जे दधातन।”ऋग्वेद )
अर्थ: हे जलों! तुम कल्याणकारी हो, जीवन और ऊर्जा प्रदान करने वाली हो। हमें शक्ति प्रदान करो।
योगाचार्या गीतांशी तिवारी ने कहा: “योग केवल व्यायाम नहीं, यह जीवन जीने की कला है। गंगा की पवित्रता, वेदों की दिव्यता और योग की सहजता – यह त्रिवेणी हमें मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाती है। हमारी संस्कृति ने हमेशा नदियों को देवतुल्य माना है, और आज का यह आयोजन इसी भाव को जीवंत करता है।”
योग शिक्षक ललन कुमार सिंह ने कहा “नमामि गंगे केवल एक सरकारी योजना नहीं, यह एक सांस्कृतिक जागरण है। जब हम गंगा को स्वच्छ रखने की बात करते हैं, तो वह केवल जल संरक्षण नहीं, संस्कृति संरक्षण भी है। योग एक माध्यम है इस संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का।”
डॉ. गिरीश अधिकारी ने कहा: “गंगा की महिमा को समझना है तो वेद और पुराणों का अध्ययन आवश्यक है। भागीरथ प्रयत्न, कपिल मुनि की कथा, और वेदों में वर्णित जल देवता के रूप में गंगा का स्वरूप हमें आस्था के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी सिखाता है। योग और वेद के संगम से ही हम गंगाजल की मूल भावना को समझ सकते हैं।”
योग शिक्षक रजनीश जोशी ने कहा:“गंगा केवल जल की नहीं, विचारों की धारा है। यह हमें जोड़ती है – भौगोलिक रूप से भी, और आध्यात्मिक रूप से भी। योग और वैदिक मंत्रों के माध्यम से हम अपनी चेतना को शुद्ध करते हैं, जैसे गंगा हमारी भूमि को शुद्ध करती है।”
हेमलता अवस्थी ने कहा

“स्त्रियों की भागीदारी सनातन काल से संस्कृति के केंद्र में रही है। गंगा एक मातृरूप है, और योग का अभ्यास भी मातृशक्ति की तरह पोषण करता है। हमें महिलाओं की भूमिका को संस्कृति संरक्षण में और प्रबल बनाना चाहिए।”
यह पूरे कार्यक्रम का संरक्षण डॉ. नवीन चंद भट्ट, विभागाध्यक्ष, योग विज्ञान विभाग, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा के मार्गदर्शन में हुआ। उन्होंने कहा:
“हमारा उद्देश्य गंगा, वेद और योग को एक साझा मंच पर लाना है जिससे नई पीढ़ी को यह समझाया जा सके कि हमारी नदियाँ केवल भौगोलिक धाराएं नहीं हैं, वे हमारी चेतना की वाहक हैं। यदि हम गंगा को बचाना चाहते हैं तो हमें संस्कृति को पुनर्जीवित करना होगा।”
कार्यक्रम का संचालन डॉ. गिरीश अधिकारी द्वारा किया गया। समापन में वैदिक कल्याण मंत्र का उच्चारण किया गया:
“सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।”
अर्थ: सब सुखी हों, सब रोगमुक्त हों।
इस पावन अवसर पर बड़ी संख्या में स्थानीय जनता ने भाग लिया। उपस्थित प्रतिभागियों में प्रमुख रूप से ललिता तोमकियाल, खुशी बिष्ट, गीतांशी तिवारी, पंकज राठौर, अभय, आशीष, माया कविता तोमक्याल, निशा बिष्ट, योगेश पाल, पूजा सैनी, अनुराधा धामी, जय सिराड़ी, संतोष बिष्ट, यशिका जोशी मोहित खनी, पूजा बिष्ट, आदित्य , संतोष बिष्ट,अनुराधा , गंगा, पवन सिराड़ी , जय सिराड़ी ,निशा बिष्ट, नेहा आर्य, भावना , बेबी शुक्ला, महक वर्मा, साक्षी भारद्वाज , योगेश पाल, पूजा सैनी,, ललिता , माही वर्मा , , आदि उपस्थित रहे।
“नमामि गंगे” का यह आयोजन केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि सनातन मूल्यों, योग, वेद, पर्यावरण, और भारतीय संस्कृति का पुनर्जागरण है। यह अभियान भारत की उस आत्मा को फिर से जगा रहा है, जो नदियों, वेदों और योग की शुद्धता में बसती है।

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