चंपावत:- “बाबा ब्यानधुरा” देवताओं की विधानसभा, जहां मन्नत पूरी होने पर चढ़ाते हैं धनुष बाण।

ऋषि-मुनियों एवं देवी-देवताओं की तपस्थली कहे जाने वाला उत्तराखंड अपनी परंपराओं और रहस्यों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस देवभूमि की दिव्यता का वर्णन वेदों और शास्त्रों में देखने को मिलता है। आज हम आपको देवभूमि उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां मन्नत पूरी होने पर प्रशाद नहीं बल्कि धनुण-बाण चढ़ाए जाते हैं। मंदिर में भारी संख्या में चढ़ाए गए धनुण-बाण इसका प्रमाण हैं। इस मंदिर का नाम ब्यानधुरा है। और यह मंदिर पहाड़ों के बीचों-बीच ब्यानधुरा क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर में ऐड़ी देवता विराजमान है। और भगवान शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक को यहां मान्यता प्राप्त है।

वैसे तो देवभूमि में कई मंदिर हैं लेकिन ब्यानधुरा मंदिर में मन्नत पूरी होने पर धनुष बाण चढ़ाने के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां अगर संतानहीन दंपती संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना और पूजा करता है तो उसकी मनोकामना जल्द पूरी होती है और फिर मंदिर में धनुष – बाण या फिर अस्त्र-शस्त्र चढ़ाए जाते हैं। मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि अगर अखंड ज्योति जलाकर कोई कीर्तिन करें तब भी उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है।

ब्यानधुरा शब्द का अर्थ है बाण की चोटी और जिस पहाड़ की चोटी पर यह मंदिर स्थित है, उसका आकार धनुष के समान है। इस मंदिर में ऐडी देवता विराजमान हैं। वैसे तो कुंमाऊं में ऐडी देवता के कई मंदिर मिल जाएंगे लेकिन सभी मंदिरों में इस मंदिर की पौराणिक मान्यता ज्यादा है। इसी कारण कुमाउं में इसे देवताओं की विधानसभा के नाम से जाना जाता है।

ब्यानधुरा मंदिर में स्थित ऐडी देवता कालांतर में राजा ऐडी लोकदेवताओं में पूजे जाते हैं और जहां यह मंदिर स्थित है, राजा ऐडी ने यहीं तपस्या की थी। अपने तप के बल से राजा ने देव्तत्व प्राप्त किया था। राजा ऐडी धनुष विद्या में काफी निपुण थे और उनका एक रूप महाभारत काल में अर्जुन के रूप में अवतार लिया। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस क्षेत्र को अपना निवास स्थान बनाया था। साथ ही अर्जुन ने यहीं पर अपने गांडीव धनुष को पहाड़ की चोटी के पत्थर के नीचे छिपाए थे, जो आज भी मौजूद हैं।

कहा जाता है कि ऐडी देवता के अवतार ही उस धनुष को उठा पाते हैं। मुगलों ने कई बार इस क्षेत्र में आक्रमण किया लेकिन ब्यानधुरा क्षेत्र की चमत्कारिक शक्ति की वजह से पहाड़ से आगे नहीं बढ़ पाते थे। ब्यानधुरा मंदिर से कुछ ही दूरी पर गुरु गोरखनाथ की धूनी है, जो लगातार जलती रहती है। इसके साथ ही एक और धूनी मंदिर में स्थित है। इस मंदिर में मकर संक्रांति, चैत्र नवरात्र और माघी पूर्णमासी को भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

पहाड़ के बीचों-बीच स्थित इस मंदिर केवल मान्यताओं के लिए ही नहीं बल्कि अपने मनोहर दृश्य को लेकर भी काफी प्रसिद्ध है। मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण चारों ओर से पहाड़ों से घिरा ब्यानधुरा मंदिर अपने पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण स्थान है। यहां के सुंदर नजारे पर्यटकों को काफी आकर्षित करते हैं। नदियां और पहाड़ ब्यानधुरा मंदिर की शोमा और बढ़ाते हैं।