पढ़े ‘समाज के दो पहलु में नारी’ पर एसएसजे केंपस अल्मोड़ा की छात्रा निशा की स्वरचित कविता

समाज के दो पहलू में नारी…
जहा समय नारी का माना जाता हैं
वहीं नारी को डराया जाता है
जहा नारी को देवी माना जाता है
वहीं उसके रक्त को अलगाव से देखा जाता है
जहा नवरात्र में उसे चुनरी से सवारा जाता है
वहीं उसकी चुनरी से खेला जाता है
जहा रिश्तों से घर बनाया जाता है
वही उसे रिश्तों द्वारा उसे डराया जाता है
जहां मन्दिरों में उसे पूजा जाता है
वहीं उसे बेरहमी से नोचा जाता है
जहा को आजाद माना जाता है
वहीं देर रात बाहर होने पर उसके चरित्र पर प्रश्न किया जाता है
जहा उसे सृष्टि की जननी माना जाता है
वहीं उसी जननी को तिल तिल मारा जाता है
जहा शिक्षा का ज्ञान बाटा जाता है
वही उसे दरिंदगी का शिकार बनाया जाता है
जहा उसे राजकुमारी, प्यारी ,सुंदर, रानी माना जाता है
वही उसे वो हैंवान द्वारा अपनी हवस का शिकार बनाया जाता है
जहा समय में बदलाव तो लाया जाता है
वहा क्यों नारी की सुरक्षा में बदलाव नहीं लाया जाता है❔❔❔
-✍️NISha