विशेषज्ञों द्वारा कहा जा रहा है कि अब बारिश हो या सूखा लेकिन मक्के की फसल पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा साथ ही रोग भी न के बराबर लगेंगे और उत्पाद में वृद्धि होगी| यह सब मक्के की नई प्रजाति से संभव होगा जो गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय पंतनगर तैयार कर रहा है|
विश्वविद्यालय पंतनगर के वैज्ञानिक मक्के की जंगली जीन से इसे विकसित करने में लगे हैं| देश के विभिन्न हिस्सों में इसके अच्छे परिणाम मिलने से वैज्ञानिकों में उत्साह जाग उठा है| अब दूसरे वर्ष के परिणाम अप्रैल में आएंगे| जिसके बाद इस प्रजाति को बाजार में उतारा जाएगा|
डॉ.सिंह के अनुसार मक्के की जंगली प्रजाति जीया मैज की उप प्रजाति पार्वीग्लुमिस के जीस में परिवर्तन किया गया| इसका असर यह दिखा की मेडीस लीफ ब्लाइट, बैंडेड लीफ, डेथ लीफ व रस्ट आदि रोग नहीं दिखे। जीया निकाराग्युनसिस जंगली प्रजाति जीन को मक्के की प्रजाति में ट्रांसफर करके बारिश के पानी से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है| इस प्रयोग में पौधे की कई शाखाएं निकली है जिससे चारे का उत्पाद पड़ेगा|