दैशिक शास्त्र ग्रंथ की भूमिका में बद्री साह ठुलघरिया ने उद्धृत किया है कि दैशिक शास्त्र का कुछ अंश बहुत पहले लिखा गया था जो लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक महाराज को भेजा गया था जिसको पढ़कर आप बहुत प्रसन्न हुए|
आगे उन्होंने लिखा है कि लोकमान्य के कर कमलों से इस पुस्तक की भूमिका लिखी जानी थी, किंतु सहसा आपका शरीर त्याग हो जाने के कारण ऐसा न हो सका| अतः इस पुस्तक को आपके स्मारक रूप में प्रकाशित कर देना उचित समझा गया|
बेहद आश्चर्यजनक है कि आज की पीढ़ी को न तो बद्री साह ठुलघरिया जैसे महान राष्ट्रवादी विचारक के कृतित्व एवं व्यक्तित्व के बारे में बताया जाता है और न ही उनके राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत उनके द्वारा लिखे गए दैशिक शास्त्र की चर्चा होती है|
इससे भी अधिक सोचनीय बात यह है कि उत्तराखंड के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों जिसमें कुमाऊं विश्वविद्यालय भी शामिल है, के द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन तथा स्वतंत्रता सेनानियों पर न जाने कितने ही शोध योजनाएं संपादित की जा चुकी होंगी तथा सैकड़ों हजारों की संख्या में पीएच.डी. उपाधियां प्रदान कराई गई होंगी पर बद्री साह ठुलघरिया तथा उनके द्वारा लिखे गए दैशिक-शास्त्र का शोधकर्ताओं ने नाम तक नहीं लिया हैं|