देहरादून| उत्तराखंड के जंगलों में गर्मियों के दिनों में आग लगने का सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है| जिसके लिए समय-समय पर कई कदम उठाए जाते हैं| लेकिन फिर भी हर साल जंगलों में आग लगती रहती है| जिस कारण जंगलों में रहने वाले जानवर आबादी की ओर रुख करते हैं और पर्यावरण को अलग नुकसान होता है| इसके अलावा जंगलों के आसपास निवास करने वाले लोगों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है| अभी मौसम साथ दे रहा है नमी को देखते हुए उत्तराखंड के जंगलों में अभी आग का खतरा नहीं है| लेकिन आने वाले दिनों की चुनौती से निपटने के लिए वन विभाग ने कमर कस ली है| उनका दावा है कि अग्नि नियंत्रण के मद्देनजर बचाव एवं प्रबंधन के लिए सभी आवश्यक सेवाएं चाक-चौबंद कर ली गई है| पहाड़ से लेकर मैदान तक जंगलों की निगरानी को 174 वॉच टावर स्थापित किए गए हैं जबकि पहाड़ में दुरूह परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में ड्रोन से भी नजर रखी जाएगी|71.0 5 प्रतिशत भू भाग वाले उत्तराखंड में 45.44% अनावरण फॉरेस्ट कवर है| विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस राज्य में वन क्षेत्र के रूप में फैले खुले खजाने की आग से सुरक्षा किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है| फिलहाल सर्दियों में अच्छी बारिश और बर्फबारी होने के कारण इस बार जंगलों में ठीक-ठाक नमी बनी हुई है| जिस कारण वन विभाग ने कुछ राहत की सांस ली है लेकिन चिंता अभी खत्म नहीं हुई है क्योंकि आने वाले दिनों में जब पारा उछाल भरेगा तो आग का खतरा बढ़ सकता है| जिसे देखते हुए विभाग ने पिछले अनुभवों से सबक लेकर समय रहते आग से निपटने की तैयारियां कर ली है इसके अंतर्गत सूचनाओं के आदान-प्रदान को एक राज्यस्तरीय और वृत्त स्तर पर 40 मास्टर कंट्रोल रूम बनाए गए हैं| जहां आग की सूचना मिलते ही इस पर तुरंत काबू पाने के लिए 1317 कूर-स्टेशन स्थापित करने के साथ ही इसमें कार्मिकों की तैनाती कर दी गई है| प्रत्येक वन प्रभाग में आवश्यक उपकरणों के साथ ही इस बार लीफ ब्लोअर की व्यवस्था भी की गई है| दावानल संबंधी सूचना के पूर्वानुमान के लिए सिस्टम तैयार कर दिया गया है| जानकारी के अनुसार इसके अलावा ऐसी व्यवस्था की गई है कि बीट स्तर तक सूचना तत्काल पहुंचे|
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