
चंपावत। जहां एक तरफ पहाड़ में लोग पीरुल को जल संरक्षण के लिए अभिशाप मानते हैं वहीं दूसरी तरफ पहाड़ की महिलाओं ने पिरूल को रोजगार के तौर पर उपयोग किया है। जी हां चंपावत जिले की खेतीखान क्षेत्र की महिलाओं ने पिरुल को आर्थिकी का साधन बना लिया है वह पीरूल से विभिन्न प्रकार के उत्पादन बनाती हैं और देश विदेशों में उसे बेचकर हजारों रुपए की आय अर्जित करती है। जैसे की हम सबको पता है पहाड़ों में पिरुल सबसे अधिक पाया जाता है और इसे लेकर सरकार भी काफी गंभीर हैं हाल ही में सरकार ने यह निर्णय लिया है कि पीरुल से ऊर्जा बनाने का संयंत्र लगाया जाएगा। जिसके बाद पहाड़ में करीब डेढ़ साल पहले एसबीआई यूथ फाउंडेशन की रिसर्च फेलो महाराष्ट्र निवासी डॉ नूपुर पोहरकर आई जो कि ग्रामीण विकास के लिए काम करती हैं उन्होंने यहां पर देखा के रास्तों में पिरुल ऐसे ही बेकार पड़ा रहता है इसलिए उन्होंने इसे रोजगार से जोड़ने का मन बना लिया महिलाओं को इससे उत्पाद बनाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जिसके बाद चंपावत जिले के खेतीखान गांव की महिलाओं ने इसे अपनी आजीविका के तौर पर अपनाया और विभिन्न उत्पाद बनाकर देश विदेशों में बेचा। बता दें कि पिरुल से बनी राखियों को भी लोग काफी पसंद कर रहे हैं। इन महिलाओं के पास महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान समेत कई अन्य जगहों से भी आर्डर आते हैं और राखी के अलावा यह लोग टेबल, पोस्टर ,फूलदान आदि चीजें बनाती हैं। इस मामले में पेरोल उत्पादन कर रही सुनीता ने बताया कि वे अपने उत्पादों को ऑनलाइन भी बेचते हैं जिसके लिए वेबसाइट बनाई गई है और इस वेबसाइट को भी वे लोग स्वयं संचालित करते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि देश विदेश से पिरुल उत्पाद के इतने आर्डर आते हैं कि वह लोग उन्हें पूरा भी नहीं कर पाते हैं। साथ में उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें इस काम के लिए अन्य महिलाओं की जरूरत है।
