पिथौरागढ़ में कोरोना के कारण 3 साल बाद फिर 19 नवंबर को दिवाली के ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन धूमधाम से मनाया जाएगा बौराणी मेला।पिथौरागढ़ में आयोजित यह मेला अपने सांस्कृतिक कार्यक्रमों व व्यापार के लिए जाना जाता है। अगर इस मेले को हम इतिहास की दृष्टि से देखें तो यह सैम देवता के लिए मनाया जाता है, तथा कार्तिक पूर्णिमा की रात को कई फुट ऊंची मशाल बनाई जाती है। इतिहास में बौराणी के स्थान पर होने वाला बौराणी मेला जुआ खेलने के लिए जाना जाता था। लगभग 2002 से 2003 के समय में राम मंदिर के निवासी श्री प्रताप सिंह बोरा द्वारा जुआ खेलने के विरुद्ध में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
इस मेले के द्वारा कई लोग अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करते है, लोग नृत्य, गायन, तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा कार्यक्रम में उत्साह बढ़ाते है। पहले से यह मेला सिलबट्टा बेचने के लिए तथा भांग से बने पदार्थ बेचने के लिए विख्यात हुआ करता था। तथा मेले में जो मशाल जलाई जाती है उसे उस क्षेत्र में घुमाकर रात के अंधेरे को दूर किया जाता है। बौराणी मेला इस स्थान पर होने वाला साल का आखिरी मेला है जिसे लोग काफी धूमधाम से मनाते है।
इस मेले की जानकारी हमें एसएसजे कैंपस की छात्रा सौम्या बोरा द्वारा दी गई जिसके लिए पूरे कुर्मांचल अखबार की टीम उनका आभार व्यक्त करती है।