कुमाऊं वासियों के लिए, खासकर यहां की साह बिरादरी के लिए कार्तिक मास क्यों है बेहद खास………जानें हमारे साथ
अल्मोड़ा – आज से ठीक 100 साल पहले अल्मोड़ा के बुद्धिजीवी बद्री साह ठुलघरिया ने राष्ट्रीय विचारों से प्रेरित होकर संवत् 1978, कार्तिक माह के 17 गते (पैट) को ‘दैशिकशास्त्र’ नाम के अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ का प्रकाशन किया था| वर्तमान में इस ग्रंथ के विविध पहलुओं को प्रकाश में लाने का कार्य कुमाऊं विश्वविद्यालय में लंबे समय तक इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष एवं कला संकाय के संकायाध्यक्ष रहे प्रोफेसर महेश्वर प्रसाद जोशी कर रहे हैं| उनकी अगुवाई में एक टीम पिछले 3 वर्षों से दैशिकशास्त्र में वर्णित तथ्यों को बारीकी से जानने एवं समझने हेतु शोधरत है|
प्रो. जोशी के एक शोधार्थी तथा कुमाउनी साप्ताहिक, ‘कुर्मांचल अखबार’ के संपादक डॉ. चंद्र प्रकाश फुलोरिया ने बताया कि तत्कालीन परिस्थितियों में यह ग्रंथ हमारे देश एवं समाज के लिए अहम माना गया क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघर्ष की लड़ाई में आजादी के मार्ग को सक्षम बनाने तथा भारत माता के सपूतों को असल राष्ट्र जीवन की सीख देने हेतु यह उस समय के बुद्धिजीवियौं को प्रासंगिक प्रतीत हुआ|
दैशिक शास्त्र ग्रंथ में दैशिक (देश का) कामकाज, समाज एवं राष्ट्रचिन्तन, राष्ट्र की समाज एवं दिशा किस प्रकार की होनी चाहिए, इसका विस्तृत वर्णन है| हमारा प्रयास होगा कि हम इस महत्वपूर्ण ग्रंथ, दैशिक शास्त्र से जुड़ी शोधपरक जानकारी आप को प्रतिदिन /साप्ताहिक kurmanchalakhbar.in तथा कुमाउनी साप्ताहिक, कुर्मांचल अखबार के माध्यम से देते रहेंगे| उल्लेखनीय है कि बद्री साह ठुलारिया को यह श्रेष्ठ ग्रंथ लिखने की प्रेरणा मुख्य रूप से स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी सेनानी लोकनायक बाल गंगाधर तिलक से प्राप्त हुई, इसीलिए उन्होंने इस ग्रंथ को ‘बालगंगाधर तिलक’ स्मारक दैशिक शास्त्र नाम दिया| इतना ही नहीं बद्री साह उस समय के अनेकानेक सिद्ध महापुरुषों के भी सीधे संपर्क में थे तथा श्री 108 सोम्बारी बाबा महाराज के भक्त थे| अतः उनके द्वारा इस ग्रंथ को ‘सोम्बारी महाराज के चरणों का प्रसाद’ यह दैशिक शास्त्र रूपी पुष्प कहा है|