अल्मोड़ा के बद्री साह ठुलघरिया ने 100 साल पहले लिखा – दैशिक शास्त्र………….( भाग – 3)

प्राचीन भारतीय राज्य व्यवस्था के दार्शनिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की सारगर्भित प्रस्तुति है – ‘दैशिक शास्त्र’ | – प्रो. महेश्वर प्रसाद जोशी

हल्द्वानी| जाने-माने इतिहासकार तथा पुराविद् प्रोफेसर महेश्वर प्रसाद जोशी ने अपने एक शोधपत्र में दैशिक-शास्त्र की चर्चा करते हुए इस ग्रंथ को राष्ट्रवादी विचारधारा से ओतप्रोत बताया है| उन्होंने कहा है कि दैशिक शास्त्र प्राचीन भारतीय राजव्यवस्था के दार्शनिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की सारगर्भित प्रस्तुति है जो कि प्रथम दृष्टया आदर्शवादी प्रतीत होते हैं, परंतु इस ग्रंथ में व्याख्यित विचार इतने प्रभावक हैं कि वर्तमान की जटिल परिस्थितियों में भी मानव का मार्गदर्शन करते दिखाई देते हैं|

राष्ट्रवादी विचारधारा के अंतर्गत लिखे गए दैशिक शास्त्र के समसामयिक जितने अध्ययन प्रकाशित हुए हैं उनमें प्राचीन भारतीय संस्कृत, पाली ,प्राकृत भाषा में रचित ग्रंथों, विदेशी विवरणों और अभिलेखों के संदर्भों के आधार पर यह तथ्य उजागर किए गए हैं कि प्राचीन भारत में अमुक काल में अमुक प्रकार की राजव्यवस्था थी| प्रोफेसर जोशी ने दैशिक शास्त्र के स्वातन्त्र्याध्याय में उद्धृत बद्री साह के विचार – ‘ हमारे पूर्वजों के समान स्वतंत्रता को आज तक किसी ने न समझा और न शताब्दियों तक किसी के समझने की संभावना है’, को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अत्यंत प्रासंगिक बताया है| उन्होंने कहा है कि बद्री साह ठुलघरिया के स्वतंत्रता के प्रति ये उद्गार स्पष्ट करते हैं कि यह ग्रंथ इसी उद्देश्य से लिखा गया था कि साम्राज्यवादी विचारधारा से जनित भारतीय इतिहास के उस लेखन का खंडन किया जाय जिसमें कहा गया था कि भारत में राज्य व्यवस्था का कोई विधान नहीं था| प्रोफेसर महेश्वर प्रसाद जोशी ने आज की परिस्थितियों में दैशिक शास्त्र के विविध पहलुओं पर समग्र शोध की आवश्यकता पर जोर दिया है|