
चंद राजाओं के समय से तांबे के हस्तशिल्प ने एक दौर में तांबा उद्योग का दर्जा प्राप्त किया लेकिन समय के साथ यह हस्तशिल्प कला खत्म सी हो गई आज कुछ परिवार ही इस कारोबार से जुड़े हैं ताम्र उत्पाद कोई जी आई टैग प्राप्त होने के बाद फिर से उम्मीद जगी है, अब देखना यह होगा कि सरकार खत्म होते इस हस्तशिल्प को बचाने के लिए शिल्पी यों को किस तरह प्रोत्साहित करती है, पहाड़ में खासकर अल्मोड़ा जिले में तांबे के प्रसिद्ध हास्य शिल्पी हुआ करते थे चंद राजाओं के जमाने से ही ताम्र उद्योग खूब फला फूला सिक्कों के साथ कई प्रकार के बर्तन भी बनाए जाते थे अल्मोड़ा के टम्टा मोहल्ले में बहुतायत में तांबे के बर्तन वह अलग-अलग प्रकार के घरेलू इस्तेमाल की ताम्र वस्तुएं बनती थी ।
आकर्षक कलाकृतियों से सजे इन बर्तनों को उस समय खासी प्रसिद्धि भी मिली बाहर से आने वाले पर्यटक व प्रवासी लोग इन बर्तनों को खरीद कर ले भी जाते थे यही नहीं यहां के तांबे के बर्तनों के ब्रिटिश भी मुरीद थे।
अल्मोड़ा ही नहीं बागेश्वर वह पिथौरागढ़ जिलों में कई गांव में घर घर में यही काम होता था अल्मोड़ा व आसपास के इलाकों में ही करीब 500 परिवारों की आजीविका ताम्र उद्योग पर निर्भर थी
रोजगार की बढ़ती संभावनाओं के बाद यह उद्योग भी सीमेंट का चला गया उद्योग 70 के दशक तक फिर भी ठीक-ठाक चला परंतु वर्तमान में केवल 10 परिवार ही तांबे के कारोबार को कर रहे हैं 400 साल पुराने इस उद्योग को मुरादाबाद की पीतल नगरी की तर्ज पर अस्तित्व में लाने की कवायद भी शुरू हुई करीब दो दशक पूर्व ताम्रों उद्योग सहकारी समिति बनी यह दुकान खोला में 14 नाली सरकारी भूमि में ताम्र नगरी सहकारी समिति के नाम से 20 कार्यशाला अभी बनी कुछ समय काम भी चला मगर फिर उपेक्षा पीछे पड़ गई और धीरे-धीरे काम बंद होता चला गया
