भारत में क्षय रोग को नियंत्रित करने के लिए लगभग 60 वर्षों से प्रयास चल रहा है| इस बार ‘वर्ल्ड टीबी डे’ की थीम है ‘इन्वेस्ट टू एंड टीबी सेव लाइव्स’
अगर हम इसकी इतिहास की बात करें तो रॉबर्ट काक ने 24 मार्च 1882 को टीबी के जीवाणु की खोज की| यह खोज इस बीमारी को समझने और उपचार में मील का पत्थर साबित हुई| इस खोज की याद में प्रतिवर्ष 24 मार्च को विश्व टीवी दिवस मनाने की शुरुआत हुई| 1943 से पूर्व इस बीमारी की कोई दवा नहीं थी उपचार में पौष्टिक भोजन, चिकित्सकीय देखभाल और शुद्ध हवा में मरीज को रखना ही एकमात्र विकल्प होता था| जिसे सेनेटोरियम उपचार के नाम से जानते थे| इसके उपचार में अच्छा भोजन और शुद्ध हवा का वर्णन आयुर्वेद में भी मिलता है| पिछले कुछ वर्षों में परिस्थितियों में कुछ बदलाव देखने को मिला है एचआईवी के कारण विकसित देशों में टीबी की बीमारी दोबारा बढ़ने लगी है| इसके बढ़ते संक्रमण को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टीबी को वर्ष 1993 में वैश्विक आपातकाल घोषित किया था| विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा घोषित टीवी की ‘ग्लोबल हेल्थ एजेंसी’ पिछले 29 वर्ष में लगातार जारी है| विश्व के इतिहास में किसी बीमारी को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी के रूप में 29 वर्ष से जारी रहना अपने आप में एक विश्व रिकॉर्ड है| 2020 से पूर्व विश्व में एक करोड़ टीवी के मरीज पाए गए| भारत विश्व में टीवी की बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित है विश्व में प्रतिवर्ष 15 लाख मौतें इसके कारण होती है| जिसमें से हर चौथा व्यक्ति भारत से होता है| इसलिए इस बीमारी को सबसे खतरनाक और जानलेवा माना जाता है| फेफड़ों की टीवी को पल्मोनरी और शरीर के अन्य हिस्सों की टीवी को एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है|
इस बीमारी के उन्मूलन के लिए तरह की योजनाओं को देशव्यापी रूप देने की आवश्यकता है| इसके साथ ही देश में चल रही समस्त मेडिकल कॉलेजों को उनके जनपदों को टीवी मुक्त बनाने हेतु एक नोडल केंद्र के रूप में विकसित किया जाना चाहिए| जिले की स्वास्थ्य समिति जिसमें जिला अधिकारी तथा मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी शामिल होते हैं उनको भी जिले में इस बीमारी के उन्मूलन की जिम्मेदारी सुरक्षित करनी होगी| सिर्फ जिला टीबी अधिकारी के ऊपर जिले का पूरा टीवी उन्मूलन कार्यक्रम छोड़ देना भी उचित नहीं है|