
नई दिल्ली| यौवन प्राप्त कर चुकी एक मुस्लिम लड़की को शादी की अनुमति देने वाले पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की याचिका पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस बीएस नरसिम्हा की पीठ ने हरियाणा सरकार के साथ अन्य को नोटिस जारी किया है|
पीठ ने कहा, हम इन रिट याचिकाओं पर विचार करने के इच्छुक है| पीठ ने पूछा क्या पर्सनल लॉ का बचाव हो सकता है? क्या आप कस्टम या पर्सनल लॉ को एक अपराधिक अपराध के बचाव के रूप में पेश कर सकते हैं? इस्लाम में पर्सनल लॉ के अनुसार यौवन प्राप्त करने की आयु 15 वर्ष है| पीठ को एनसीपीसीआर की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सूचित किया की पर्सनल लॉ का दावा युवा लड़कियों की शादी के तरीके से आपराधिक कृत्य करने के बचाव के रूप में किया जा रहा है| जब सीजेआई ने कहा कि वह नोटिस जारी करेंगे| तब मेहता ने हाईकोर्ट के फैसले पर भी रोक लगाने की प्रार्थना की| इस पर सीजेआई ने कहा अगर हम आदेश पर रोक लगाते हैं तो जिस लड़की की शादी उसके मामा से हुई है| उसे अपने माता-पिता के पास वापस जाना पड़ेगा और लड़की ऐसा नहीं चाहती है, हालांकि पीठ ने भी कहा कि हाईकोर्ट के विवादित आदेश को अन्य समान मामलों के लिए मिसाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा| इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील राजशेखर राव को इस मामले में अदालत की सहायता करने के लिए कहा है क्योंकि वह इसी तरह के मामले में न्याय मित्र है|


