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देहरादून| यदि उत्तराखंड मूल की महिलाओं को राज्य की सरकारी नौकरी में मिल रहा 30 फ़ीसदी आरक्षण खत्म हुआ तो यहां की बेटियों को अपने घर की नौकरियों के लिए भी देश भर की महिलाओं से मुकाबला करना होगा| इससे सम्मानजनक रोजगार ही उनकी डगर मुश्किल हो जाएगी|
बताते चलें कि उत्तराखंड की महिलाओं को राज्य की सरकारी नौकरियों में 3 फ़ीसदी आरक्षण हासिल है| इस फैसले के बाद से सरकारी कार्यालयों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है| किसी भी भर्ती में अब 35 फ़ीसदी तक आवेदक महिलाएं होती हैं| महिला सशक्तिकरण की दिशा में इसे बड़ा सुधारात्मक कदम माना गया, लेकिन अब इस पर कानूनी बहस शुरू हो गई है| जानकारों का कहना है कि यदि महिला आरक्षण को लेकर ‘आवास का आधार’ खत्म हुआ तो फिर महिला आरक्षण के दस्तावेज देश के सभी राज्यों की महिलाओं के लिए खुल जाएंगे| उत्तराखंड की नारी को केंद्र सरकार की नौकरियों की तर्ज पर देश भर की महिलाओं से मुकाबला करना होगा| महिला मामलों की जानकार एडवोकेट अलका शर्मा के मुताबिक किसी भी राज्य को राज्य स्तरीय सेवाओं की शर्तें तय करने का अधिकार है| राज्य इसी आधार पर जरूरतमंद तबकों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता देती हैं| एडवोकेट शर्मा के मुताबिक सरकार को इस मामले में मजबूत पैरवी करनी होगी|
इसके अलावा सरकारी विभाग के लचर प्रयासों से पहले समूह गांव की नौकरियों में सेवायोजन पंजीकरण की बाध्यता खत्म हो चुकी है और इसके बजाय उत्तराखंड में सिर्फ 10वीं 12वीं पास करने वाले सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं| नई व्यवस्था लागू होने की बाद कई गैर प्रांतीय युवा सरकारी सेवाओं के लिए चयनित भी हुई है| यही स्थिति अब महिला आरक्षण के मामले में भी हो सकती है|
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