Uttarakhand -: दूसरों के घरों को रोशन करने के लिए जलमग्न हुआ लोहारी गांव, सुनहरी यादों को डूबते देख नम हुई आंखें

देहरादून| दूसरों के घरों को रोशन करने के लिए देहरादून का लोहारी गांव जलमग्न हो गया है| 120 मेगावाट की व्यासी जल विद्युत परियोजना की झील में 630 मीटर पानी भरा जा चुका है| इसी के साथ परियोजना की टेस्टिंग का कार्य भी तेज कर दिया गया है| गांव छोड़ने के बावजूद ग्रामीण झील के किनारे बैठकर उन सुनहरे पलों को याद कर रहे हैं जो उन्होंने अपने गांव में बिताए थे|
यमुना की तलहटी में बसे लोहारी गांव में डूबने से पहले चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी खेतों में लहलहा रही थी| धान और गेहूं की फसल किसानों में उम्मीदें जगाया करती थी| पंचायती आंगन में पर्व त्योहारों पर होने वाली झेंता, रासो, हारुल व नाटियों, लोकनृत्य हर किसी को थिरकने के लिए मजबूर कर देते थे | अपनी सुनहरी यादों को डूबता हुआ देख लोगों की आंखें नम है| बुजुर्गों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं| जिस गांव में उनकी कई पीढ़ियां पली-बढ़ी हों, उससे बिछड़ने की पीड़ा वह शब्दों में बयां नहीं कर सकते | लोहारी गांव के विस्थापितों का कहना है कि विस्थापन से पूर्व सरकार को एक अलग गांव बसाना चाहिए था| मगर सरकार ऐसा नहीं कर पाई, नतीजा परेशान ग्रामीणों को आनन-फानन में अपना सामान खुले आसमान के नीचे रखने के लिए मजबूत होना पड़ा| 1777.30 करोड़ की यह परियोजना धरातल पर तो उतर गई मगर लोहारी का दर्द किसी ने नहीं समझा| लोहारी गांव निवासी लोगों का कहना है कि सरकार को जमीन के बदले जमीन देनी चाहिए, लेकिन सिर्फ जमीन अधिग्रहण कर मुआवजा देकर ग्रामीणों को बेघर कर दिया गया है| हमारे लिए कोई पुनर्वास की व्यवस्था नहीं है| इसलिए हम खुले आसमान के नीचे रहने के लिए मजबूर हैं| लोगों का कहना है कि हमने अपने गांव को जल समाधि लेकर देश और राज्य को रोशन करने का काम किया है लेकिन हमारी सुध लेने को कोई तैयार नहीं है| देश हित में योगदान देने वालों की सुनी जानी चाहिए| 48 घंटे का नोटिस थामाकर हमसे गांव खाली करवाना सही नहीं था| ग्रामीणों का कहना है कि महिलाओं और बच्चों को दिक्कतें हो रही है| सरकार को विस्थापितों की सुध लेनी चाहिए और ग्रामीणों के लिए रहने वह खाने-पीने की उचित व्यवस्था चाहिए|