
उत्तराखंड राज्य में हमेशा से ही विशेषज्ञ चिकित्सकों की काफी कमी रहती आई है और सबसे अधिक कमी पर्वतीय जिलों में होती है। बता दें कि राज्य में एक करोड़ की आबादी पर केवल एक हार्ड स्पेशलिस्ट है और जब यह छुट्टी पर चले जाते हैं तो मरीजों को और भी ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उत्तराखंड स्पेशलिस्ट और सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों की भारी कमी से जूझ रहा है तथा राज्य में हार्ट स्पेशलिस्ट देहरादून के गवर्नमेंट दून मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में स्थापित है इसके साथ ही राज्य में एक सरकारी ऑंकोलॉजिस्ट, एक न्यूरो सर्जन और एक यूरोलॉजिस्ट है। सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सक को स्पेशलाइजेशन की डिग्री प्राप्त करने के लिए 3 साल अतिरिक्त पढ़ाई करनी पड़ती है और राज्य में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जुटाए गए डेटा के अनुसार केवल 515 रेगुलर स्पेशलिस्ट और सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सक है जबकि इनकी कुल पदों की संख्या 1254 है और अभी तक पदों के हिसाब से 59 फ़ीसदी पद खाली हैं। जब यह चिकित्सक अवकाश पर चले जाते हैं तो उस वक्त मरीजों को और भी अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बता दें कि पिछले साल जून के महीने में राज्य के परिवहन मंत्री चंदन रामदास की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें दून मेडिकल कॉलेज में भर्ती नहीं किया गया था क्योंकि वहां हार्ट के चिकित्सक मौजूद नहीं थे वह चार धाम ड्यूटी पर थे। इसलिए उन्हें उस वक्त देहरादून के एक निजी अस्पताल में लेकर जाना पड़ा जिसके बाद उन्हें हरियाणा के गुरुग्राम में स्थित मेदांता अस्पताल में लाया गया। ऐसे में हम अंदाजा लगा सकते हैं कि उत्तराखंड में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कितनी कमी है।
