
प्रदेश में प्लास्टिक कचरे के निस्तारण में हीलाहवाली करने, ग्राम पंचायतों का मानचित्र अपलोड नहीं करने पर प्रदेश के सभी डीएफओ पर नैनीताल हाईकोर्ट ने 10-10 हजार का जुर्माना लगाया है| साथ ही पीसीसीएफ, सदस्य सचिव प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित गढ़वाल और कुमाऊं आयुक्त को 15 दिसंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के निर्देश दिए गए हैं| यह सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हुई|
बताते चलें की अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है| जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकार ने 2013 में प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण के लिए नियमावली बनाई थी| लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है| केंद्र सरकार ने भी प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स में उत्पादनकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेता को जिम्मेदारी दी थी कि वह जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे उतना ही खाली प्लास्टिक वापस ले जाएंगे| अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो संबंधित नगर निगम, नगर पालिका व अन्य को फंड देंगे| जिससे कि वह इसका निस्तारण कर सकें| जिसका उल्लंघन उत्तराखंड में किया जा रहा है| पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं और उनका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है|
इससे पूर्व सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्लास्टिक कचरे का निस्तारण न होने पर सख्त नाराजगी जताई थी और कहा था कि इसे लेकर धरातल पर कोई काम नहीं हो रहा है| अधिकारियों की ओर से प्लास्टिक और अन्य कचरे के निस्तारण के लिए जमीनी स्तर पर कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं| केवल कागजी काम हो रहे हैं| इसके बाद कोर्ट ने जिला अधिकारियों के लिए कई दिशा निर्देश जारी किए थे| जिसमें कहा गया था कि कोर्ट एक ईमेल आईडी बनाएगा, जिसमें प्रदेश के नागरिक सॉलिड वेस्ट और कचरे की शिकायत दर्ज कर सकेंगे| जो शिकायतें कुमाऊं गढ़वाल कमिश्नर को भेजी जाएंगी|
