देहरादून| लेखक, साहित्यकारों के मुद्दे विधानसभा चुनाव में भी अनछुए न रह जाए, इसके लिए साहित्यकारों में भी हलचल होनी शुरू हो गई है| सभी राजनीतिक दल अपने अपने-अपने घोषणा पत्रों पर मंथन कर रहे हैं| तो साहित्यकार इन दलों को इस बात को ध्यान दिलाने में जुटे हैं कि वे भी समाज का एक अहम हिस्सा है| उन्हें भी सुविधा सम्मान की तलाश है|
समय साक्ष्य के नेतृत्व में राजनीतिक दलों को जागरूक करने की मुहिम शुरू हो गई है| इसमें प्रदेशभर के साहित्यकारों को जोड़ा गया है| जिसमें मोटे तौर पर कुछ मुद्दों को जोड़ा गया है और विस्तार दिया जा रहा है| समय साक्ष्य प्रकाशन के प्रवीण भट्ट कहते हैं कि साहित्य और साहित्यकार राजनीतिक दलों के एजेंडे में शामिल नहीं रहे हैं| इसी आधार पर यह विचार बन रहा है कि इस वर्ष के विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से मिलकर राज्य में साहित्य और साहित्यकारों से जुड़े प्रश्नों को उनके सामने लिखित रूप में रखा जाए| जिससे इन प्रश्नों पर अधिक बातचीत हो सके| और यह मुद्दे राजनीति दलों के घोषणापत्र में आ सके|
कुछ साहित्यकारों के अनुसार जिसमें डॉक्टर राजेश पाल, महेश पुनेठा और दिनेश कर्नाटक शामिल है, एजेंटा जल्द ही राजनीतिक दलों को सौंपा जाएगा|
इस एजेंडे में प्रमुख मुद्दे सम्मिलित किए गए हैं-:
- साहित्यिक व भाषाई गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड भाषा संस्थान हो|
- उत्तराखंड हिंदी अकादमी, पंजाबी अकादमी, उर्दू अकादमी को स्वायत्तता एवं सशक्त बनाए|
- विधायक निधि से ग्रामीण क्षेत्रों में पुस्तकालय बनाएं|
- सरकार द्वारा पुस्तकों के प्रकाशन के लिए दी जाने वाली सहायता को अधिक प्रभावी व उपयोगी बनाएं|
- उत्तराखंड हिंदी अकादमी एक हिंदी मासिक साहित्य एवं आंचलिक भाषा की पत्रिका प्रकाशित करें|
- सरकार साल में कम से कम एक पुस्तक मेले का आयोजन करें|
- साहित्यकारों लेखकों व पत्रकारों को दी जा रही पेंशन की प्रक्रिया को सरल व प्रभावी बनाएं|
- केंद्र के राजा राम मोहन राय पुस्तकालय द्वारा जिला पुस्तकालयों को पुस्तके नियमित मिले|
- जिला पुस्तकालयों में पुस्तकालय अध्यक्ष के पद सृजित हो| हर पुस्तकालय में पुस्तकों के क्रय को निश्चित धनराशि मिले|
- हर जिले में साहित्य, कला, संगीत व रंगकर्म की गतिविधियों के लिए संस्कृति सभागार बने|
- प्रख्यात साहित्यकार व संस्कृतकर्मियों के जन्म स्थल पर उनके नाम पर शोध संस्थानों के नाम हो|
- साहित्यकारों के प्रोत्साहन को पुस्तक योजना हो|