अल्मोड़ा के मुरली मनोहर मंदिर में गूंजे वेदों के स्वर….नमामि गंगे बना योग, संस्कृति और सनातन का सेतु

अल्मोड़ा के मुरली मनोहर मंदिर में गूंजे वेदों के स्वर….नमामि गंगे बना योग, संस्कृति और सनातन का सेतु

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार एवं राज्य स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे उत्तराखण्ड के संयुक्त तत्वावधान में “आओ हम सब योग करें” अभियान के अंतर्गत आज अल्मोड़ा के ऐतिहासिक मुरली मनोहर मंदिर परिसर में एक विशेष आयोजन हुआ।

यह आयोजन गंगा, वेद, पुराण और नदी सभ्यता की विरासत को जनमानस तक पहुंचाने और योग तथा भारतीय संस्कृति के मूल स्वरूप को पुनर्जीवित करने की एक अनूठी पहल साबित हुआ।

कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि समाजसेवी प्रीति शाह, पुजारी देवीदत्त पांडे, योग शिक्षक ललन कुमार सिंह और रॉबिन हिमानी द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुई। तत्पश्चात सभी अतिथियों का अंगवस्त्र और बेज अलंकरण के साथ स्वागत किया गया।

मुख्य अतिथि समाजसेवी प्रीति शाह ने कहा:
“आज हम जिस सनातन ज्ञान की बात करते हैं, वह केवल ग्रंथों में सीमित नहीं है। वेद, योग और नदियाँ – यह तीनों हमारी जीवनधारा हैं। नमामि गंगे जैसे कार्यक्रम समाज को आत्मिक स्तर पर जोड़ने का काम कर रहे हैं। यह अभियान युवाओं में नई चेतना भर रहा है, जो केवल शरीर नहीं, आत्मा को भी स्वस्थ करता है।”
विशिष्ट अतिथि पुजारी देवीदत्त पांडे ने कहा:
“मुरली मनोहर मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह एक जीवंत धरोहर है जहाँ वेदों की ध्वनि आज भी जीवित है। यहाँ आयोजित इस कार्यक्रम ने सनातन संस्कृति के मूल स्वरूप को पुनः सामने रखा है। मंदिरों का यह सांस्कृतिक रूप से पुनर्प्रयोग समाज के लिए ऊर्जा का स्रोत है।”
डॉ. गिरीश अधिकारी (कार्यक्रम संचालक) ने कहा:
“वेदों और योग का संबंध केवल आध्यात्मिक नहीं, वैज्ञानिक भी है। हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले जो जीवनशैली दी, वही आज रोग, तनाव और प्रदूषण से लड़ने का समाधान है। गंगा के तट पर या मंदिर परिसर में जब योग होता है, तो वह केवल आसन नहीं, संस्कृति का अभ्यास बन जाता है।”
श्रीमती हेमलता अवस्थी ने कहा:
“नमामि गंगे का यह अभियान हमें याद दिलाता है कि हमारी नदियाँ केवल जलधाराएं नहीं, बल्कि जीवित परंपरा हैं। गंगा माता का सम्मान केवल नदी के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवनशक्ति के रूप में होना चाहिए। इस प्रकार के आयोजन उस भुलाए जा चुके सांस्कृतिक चेतना को पुनः जागृत करते हैं।”
योग शिक्षक ललन कुमार सिंह ने कहा: “योग अभ्यास न केवल शरीर को पुष्ट करता है, बल्कि यह जीवन को अनुशासित और शांत बनाता है। जब यह अभ्यास वेदों के मंत्रों के साथ हो, तो उसकी शक्ति हजार गुना बढ़ जाती है। हमें ऐसे आयोजनों को गांव-गांव तक ले जाना चाहिए।”
योग शिक्षक रजनीश ने कहा:
“आधुनिक जीवनशैली ने हमें तनाव और रोग दिए हैं, जबकि योग और वेदों में जीवन का सच्चा रहस्य छिपा है। यह आयोजन हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। हर मंदिर, हर गाँव में ऐसा प्रयास होना चाहिए जिससे युवा पीढ़ी जागरूक हो सके।”
शोधार्थी रॉबिन हिमानी ने कहा:
“नदी सभ्यता केवल इतिहास नहीं, वर्तमान और भविष्य की चेतना है। गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी नदियाँ हमारे शरीर के भीतर भी प्रवाहित होती हैं – प्राण रूप में। यह आयोजन एक शोध की तरह है, जिसमें जीवित संस्कृति को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।”
डॉ. नवीन चंद भट्ट, विभागाध्यक्ष, योग विज्ञान विभाग, एसएसजे विश्वविद्यालय ने मार्गदर्शन में कहा:
“नमामि गंगे केवल जल की शुद्धता का नहीं, चेतना की शुद्धता का अभियान है। इसमें वेदों का दर्शन, योग का विज्ञान और नदियों का आध्यात्मिक महत्त्व – तीनों एक साथ समाहित हैं। यह पहल आने वाली पीढ़ियों के लिए अमूल्य धरोहर बन सकती है, यदि हम इसे जन-आंदोलन में बदलें।”
कार्यक्रम संचालन डॉ. गिरीश अधिकारी ने किया। समापन वैदिक मंत्रोच्चार और शांति पाठ के साथ हुआ, जिससे वातावरण पवित्रता और ऊर्जा से भर उठा।
इस विशेष आयोजन में बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक, युवा, महिलाएं और बच्चे शामिल हुए। प्रमुख रूप से सुदर्शन लाल साहब, दीवान बिष्ट, अंकित, खुशी, माया, मनीष कांडपाल, सूरत बिष्ट, अनंत बिष्ट , दीक्षा कांडपाल, काजल, गीतांजलि, प्रवल, ललिता, नेहा, गीतांशी, पूजा, यशिका, योगेश पाल, आशीष संतोलिया, अभय, पंकज, केशव, निशा बिष्ट, आदि उपस्थित रहे।
“नमामि गंगे” का यह आयोजन केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि सनातन मूल्यों, योग, वेद, पर्यावरण, और भारतीय संस्कृति का एक जागृत मंच बनकर सामने आया। यह भारत की उस आत्मा का स्मरण कराता है जो जल, जंगल, जीवन और ज्ञान में समाहित है।

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