निचली अदालतों को सुप्रीम कोर्ट ने दी सीआरपीसी की धारा 277 का पालन करने की नसीहत, जाने धारा 277 के नियम

नई दिल्ली| सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया है कि जिस भाषा में गवाह बयान देता है उसे भी अंग्रेजी रिकॉर्ड में शामिल करना गलत है| सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में गवाही को मूल भाषा के बजाय अंग्रेजी में अनुवाद करके रखने की प्रथा को गलत ठहराया है|


मामले में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने सभी अदालतों को गवाही दर्ज कराते समय सीआरपीसी की धारा 277 के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करने की नसीहत दी|
बता दें कि पीठ द्वारा यह टिप्पणी एक आपराधिक अपील का निस्तारण करते हुए दी गई| पीठ ने पाया कि कुछ निचली अदालतों में गवाहों के बयान उनकी भाषा में दर्ज नहीं किए जा रहे हैं, उन्हें सिर्फ अंग्रेजी भाषा में जैसा कि पीठासीन अधिकारी ने अनुवाद किया हो, रिकॉर्ड में लिया जा रहा है| जिस मामले की सुनवाई हो रही थी उस मामले में गवाह ने अपनी मातृभाषा में बयान दिए थे, लेकिन उसका अंग्रेजी भाषा में रिकॉर्ड रखा गया था| मामले में पीठ ने कहा कि गवाह के साक्ष्य को अदालत की भाषा में या गवाह की भाषा में जैसा भी संभव हो दर्ज किया जाना चाहिए| उसके बाद ही रिकॉर्ड का हिस्सा बनाने के लिए अदालत की भाषा में इसका अनुवाद किया जाना चाहिए| गवाह की सर्वोत्तम तरह से सराहना तभी हो सकती है जब उसे गवाह की भाषा में दर्ज किया जाए, ताकि जब कभी गवाह सवाल उठता है कि गवाह ने आखिर क्या कहा है तो उसकी वास्तविक गवाही मायने रखती है, अंग्रेजी का अनुवाद काम नहीं आ सकता है|
धारा 277 के तहत,
अगर कोई कोर्ट की भाषा में गवाही देता है तो उसे उसी भाषा में दर्ज करना होता है, और किसी अन्य भाषा में बयान देता है तो यदि संभव हो तो उसे उसी भाषा में दर्ज किया जाना चाहिए और यदि ऐसा करना संभव न हो तो अदालत में गवाही का सही अनुवाद तैयार किया जा सकता है|
यह सिर्फ तब होता है जब गवाह अंग्रेजी में गवाही दे और उसे उसी रूप में दर्ज कर लिया जाए| साथ ही किसी भी पक्ष की ओर से अदालत की भाषा में उसके अनुवाद की आवश्यकता नहीं होती है| तब अदालत ऐसे अनुवाद में छूट दे सकती है|
अगर गवाह अदालत की भाषा के अलावा किसी अन्य भाषा में गवाही देता है, तो जल्द से जल्द अदालत की भाषा में इसका सही अनुवाद तैयार किया जाना चाहिए|