देहरादून। राज्य में भर्ती घोटाले को लेकर चल रहे सीबीआई जांच की मांग को अब पूर्व राज्यसभा सांसद और कांग्रेसी नेता प्रदीप टम्टा ने भी समर्थन दिया है उन्होंने अपनी एक फेसबुक पोस्ट के माध्यम से लिखा है कि राज्य में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग तथा विधानसभा में नियुक्तियों में भ्रष्टाचार व भाई भतीजावाद को लेकर चल रहे आन्दोलन के कारण राज्य सरकार को आज हरकत में आना पड़ा लेकिन अभी तक जो मुख्य मुद्दा था जहां भ्रष्टाचार के मामले स्पष्ट थे वहॉ पर सरकार स्पष्ट या निर्णायक कदम उठाने में हिचकिचा रही है । सरकार को एस टी एफ का गठन करना पड़ा । कुछ गिरफ़्तारियाँ भी हुई लेकिन मुख्य माँग जिसकी माँग चौतरफ़ा हो रही है कि इस भ्रष्टाचार के तह में जाने के लिए इसकी जाँच सी बी आई से आवश्यक है तथा कांग्रेस पार्टी की मॉंग कि सी बी आई की जाँच उच्च न्यायालय के supervision में हो , को अभी तक स्वीकारा नहीं गया है। विधानसभा में की गई नियुक्तियों को लेकर मुख्यमंत्री जी ने विधानसभा अध्यक्ष से कार्रवाई करने का अनुरोध किया था ।
आज विधानसभा अध्यक्ष ने उस पर कार्रवाई करते हुए एक तीन सदस्यों की समिति गठित की है जो एक माह के अंदर इसकी जाँच कर विधानसभा अध्यक्ष को अपनी संस्तुतियाँ देगी । विधानसभा अध्यक्ष के अनुसार समिति के सदस्य इस विषय के विशेषज्ञ हैं इसलिए राज्य की जनता को इस पर भरोसा करना चाहिए । उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभा में भर्ती नियमावली बनने के बाद की सभी नियुक्तियों की यह समिति जाँच करेगी ।
विधानसभा अध्यक्ष की बात पर सभी को भरोसा करना होगा । उन्होंने कहा भी है कि विधानसभा की प्रतिष्ठा पर जो सवाल उठे हैं उस पर लोगों का विश्वास पुनः स्थापित हो, इस जाँच के माध्यम से उसे प्राप्त करना उनका मुख्य लक्ष्य है ।
मैं भी विधानसभा अध्यक्ष के लक्ष्य से अपने को सहमत पाता हूँ लेकिन कुछ प्रश्न ऐसे हैं जो स्पष्ट नहीं हैं कि क्या यह समिति इन लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेगी ? विधानसभा अध्यक्ष ने समिति के गठन करते हुए घोषणा की कि यह सभी प्रकार की नियुक्तियों की जाँच करेगी चाहे वह नियमित हों , अस्थायी हों या तदर्थ हों तथा दूसरी ओर उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष के विवेकाधीन अधिकार को भी स्वीकार किया है ।
विधानसभा राज्य में संविधान व उसके तहत बनाए गए क़ानूनों की संरक्षण दाता ( custodian ) है । संविधान की मूलअवधारणा है कि राज्य की सेवाओं में भाग लेने का अवसर सभी को मिलेगा लेकिन विधानसभा में की गई बहुत सी नियुक्तियों में या आवेदन की प्रक्रिया में सभी को भाग लेने का समान अवसर नहीं मिला , समिति इस प्रश्न का उत्तर कैसे निकालेगी यह स्पष्ट नहीं है । साथ ही संविधान ने समाज के वंचित तबकों विशेषकर नियुक्तियों में उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए अनुच्छेद 16 ( 4 ) का प्रावधान किया है और उसका अनुपालन करना सरकार तथा विधानसभा दोनों का दायित्व है । विधानसभा अध्यक्ष द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति में इन वर्गों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रखा गया है जो इस बात को सुनिश्चित करे कि क्या इन वर्गों को प्राप्त संवैधानिक अधिकार का अनुपालन किया गया है ? न प्रैस वार्ता में इसका कोई संकेत उनके द्वारा दिया गया दूसरी ओर विधानसभा अध्यक्ष के पास यदि कोई विशेषाधिकार है जिसे वर्तमान अध्यक्ष ने भी स्वीकार किया है और जिसके आधार पर निवर्तमान अध्यक्ष अपनी नियुक्तियों को जायज़ ठहराते हैं । ये कुछ सवाल ऐसे हैं जिनकी स्तिथि स्पष्ट होनी चाहिए तथा तभी सबका भरोसा समिति पर बनेगा । विशेषकर वंचित वर्गों का जिनकी पैरवी करना सबकी संवैधानिक ज़िम्मेदारी भी है लेकिन स्पष्ट नीति न होने के कारण अक्सर ये ही अन्याय के सबसे अधिक शिकार हो जाते हैं