आइए कुर्मांचल अखबार के साथ पढ़ते हैं प्रकाश पांडेय की स्वरचित कविता…. “भौत्तै मिठास छी”

भौत्तै मिठास छी

रत्तै बाबु उठै दिंछी,
इज चहा व्ही बेर उंछी,
मैं गूड़ै कि टपुक दगै,
या मिसिरी कटक लगै,
चहा पिछ्यूं खुशि है बेर,
बड़ो मिठास छी।।
भिमै खाताड़ बिछै बेर,
अदराण पुराण पैरि बेर,
वी ध्वे वी वैरि पैर बेर,
जानै रुछ्यां भितर भैर,
बटुइल प्रैस करण में,
बड़ो मिठास छी!!
कभै डुबुक कभै चैंस,
कदिनै फान् खांछी मैंस,
कदिनै रांजोड़ कभै झोइ,
कभतै र्वाट घ्यू में डुबोई,
छां कि घुटुक जंबू क छोंक,
बड़ो मिठास छी!!
गदुवाक साग में दै मिठास,
गडेरि दगै नौणिक मिठास,
पालंगाक तिनाड़ लाई साग,
कतुक भल छी हमौर भाग,
अफुली बेर खानै रूछ्यां,
बड़ो मिठास छी!!
चार-पांच मैल में स्कूल हुंछी,
उतुकै सालै कि उमर हुंछी,
भिड़न घाम ऐई जां छ्यां स्कूल,
पाटि दवात दगड़ै रूल,
औंल बेड़ खानै रुछ्यां,
बड़ो मिठास छी!!
जतुकै लेखूं उतुकै कम,
पधान ल्हि जांछी गौंकि रकम,
आज सब्बै छ मैंसनाक पास,
पुराणि याद मन उदास,
खैई पीई जिबाड़ाक टुकन,
बड़ो मिठास छी!!
🙏 प्रकाश पाण्डेय ✍️
कनखल(हरद्वार)

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