
नई दिल्ली| देश में एक बार फिर कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं| बताते चलें कि देश में 10 अप्रैल से सभी वयस्कों के लिए सतर्कता यानी बूस्टर डोज लगवाने की अनुमति दे दी गई थी| अभी तक सिर्फ 4.64 लाख लोगों ने ही यह खुराक लगी है| इस विषय पर विशेषज्ञों का कहना है कि डर, अंधविश्वास और गलत जानकारी के चलते लोग सतर्कता डोज लगवाने से बच रहे हैं| विशेषज्ञों के मुताबिक सतर्कता डोज लगवाने में हिचक की मुख्य वजह प्रतिकूल प्रभाव का डर, कोविड-19 का मामूली संक्रमण होने की सोच और इस डोज के असर को लेकर मन में संशय है| विषाणु रोग विशेषज्ञ टी जैकब जान के मुताबिक, सतर्कता डोज को लेकर हिचक इसलिए भी है क्योंकि नए विशेषज्ञ के दावे भ्रमित करने वाले हैं| भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी के पूर्व निदेशक जॉन ने कहा कि लंबे समय तक लोगों को बताया गया था कि पूर्ण टीकाकरण का मतलब 2 डोज है| ऐसे में सतर्कता डोज शब्द से भ्रम की स्थिति पैदा की है| बीते हफ्ते को कोविशील्ड का उत्पादन करने वाली सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा कि उनके स्टाफ में बड़ी संख्या में बिना बिके हुए टीके मौजूद है| कंपनी ने 31 दिसंबर से टीके का उत्पादन भी बंद कर दिया है| उन्होंने टीके मुफ्त में देने की पेशकश की है| लेकिन उस प्रस्ताव पर भी ज्यादा अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है| लोग सतर्कता डोज की जरूरत पर सवाल उठा रहे हैं| क्योंकि कोविड-19 संक्रमण की पिछली लहर ज्यादा घातक नहीं थी| टीकाकरण विरोधी लोग टीका लगवाने से बच्चों का लीवर खराब होने, खून के थक्के जमने और लोगों की मौत होने जैसी झूठी खबरें फैला रहे हैं| जिससे लोगों में टीकाकरण को अधिक हिचक पैदा हो रही है|
सीकरी के मुताबिक टीकाकरण के प्रति हिचक दूर करने के लिए टीको को लेकर ज्यादा संवाद किए जाने और लोगों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किए जाने की जरूरत है| उनका कहना है कि लोगों को बताया जाना चाहिए कि जिन देशों में पर्याप्त टीकाकरण नहीं हुआ है या जिनके पास ज्यादा प्रभावी टीके नहीं है| वह कोरोना से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं|
