अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 -: समाज के असहाय वर्ग और जरूरतमंदों को सहारा देने वाली इन 5 महिला समाज सेविकाओं के बारे में जाने👇

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम आपको ऐसी पांच महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने समाज के जरूरतमंदों और असहाय की मदद की और उनका सहारा बने|
एनजीओ जिसका अर्थ होता है गैर सरकारी संगठन| एनजीओ समाज के असहाय वर्ग और जरूरतमंदों की मदद के लिए कार्य करने वाला एक संगठन है| यह ऐसी संस्था है जो सरकार या किसी व्यवसाय के लिए काम नहीं करती है, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य होता है जन सेवा करना, गरीब बेसहारों के दुख-दर्द में उसका साथ देना|


वहीं जब कोई व्यक्तिगत रूप से यानी संगठन से अलग कोई व्यक्ति समाज सेवा का कार्य करता है तो उसे समाजसेवी कहते हैं| आज हम ऐसी ही पांच समाजसेवी महिलाओं के बारे में जानते हैं, जो आज अपने आप में एनजीओ बन गई है|
इसमें पहले स्थान पर मदर टेरेसा आती है| आज जब भी समाज और मानव सेवा का बात होती है सबसे पहले मदर टेरेसा का नाम लिया जाता है| उन्होंने कम उम्र में ही मानव सेवा को अपना लक्ष्य बनाया और इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई देशों की यात्रा भी की| वह 1929 में भारत आई यहां उन्होंने भारतीयों की मदद में जीवन गुजारा| बाद में साल 1948 में मदर टेरेसा को भारत की नागरिकता मिल गई थी| मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न से भी सम्मानित किया जा चुका है|
दूसरे स्थान पर सिंधुताई सपकाल है| इन्होंने हजारों अनाथ बच्चों की मां बनकर अपना समाज सेवा का कार्य किया• यह महाराष्ट्र की है| उन्होंने रेलवे स्टेशन, फुटपाथ पर रहने वाले गरीब और अनाथ बच्चों को सहारा दिया| उनका पेट भरने के लिए खुद सड़कों पर भीख मांगी| 1400 बच्चों की मां बनकर वह महाराष्ट्र की मदर टेरेसा बन गई| इनको 700 से अधिक सम्मान मिल चुके हैं|
तीसरे स्थान पर आती है उत्तराखंड की बसंती देवी जो पर्यावरण संरक्षण, देश की संस्कृति और लोगों के जीवन में सुधार के लिए अतुलनीय प्रयास कर रही है| कोसी नदी को बचाने, समाज में फैली कुरीतियों जैसे घरेलू हिंसा, महिलाओं पर होने वाले उत्पीड़न को दूर करने के लिए बसंती देवी ने महिला समूहों का आवाहन किया| जिसके माध्यम से उत्तराखंड के जंगलों को बचाने की मुहिम चलाई गई| बसंती देवी को पद्म पुरस्कार 2022 से भी सम्मानित किया जा चुका है|
चौथे नंबर पर अरुणा राय आती है| राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय जब भारतीय प्रशासनिक सेवा में कार्यरत थी तो उन्होंने राजस्थान के गरीब लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काफी प्रयास किए| जब सूचना का अधिकार लागू हुआ तो 6 अप्रैल 1995 में अजमेर के ब्यावर में आंदोलन किया| रोजगार की गारंटी और सूचना का अधिकार कानून बनाने में अरुणा राय की भूमिका अहम रही है| अरुणा राय मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापिका भी थी| उन्हें भी कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है|
इनके अलावा सुनीता नारायण है| पर्यावरणविद सुनीता नारायण पर्यावरण संरक्षण को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास कर रही है| ब्रिटेन की सिटी ऑफ ईडनबर्ग काउंसिल ने सुनीता नारायण को उनकी योग्यता के कारण ‘ईडनबर्ग मेडल 2020’ से सम्मानित किया है|