कैसे एक युवा ने तैयार की 8 पीढ़ियों की वंशावली :- तुलेरा

नानछना से ही पहाड़, प्रकृति का सौंदर्य मुझे आकर्षित करता रहा है। मानो मुहलगे शिशु कि भांति मैंने प्रकृति से जिद सी की, बदले में उसने दुलार से मुझे जितना जिज्ञासु उतना ही रचनात्मकता की ओर प्रेरित किया। मेरे इजा-बाबू, मेरे अपने व गुरूओं के आत्मीय स्वभाव ने इस कड़ी को और मजबूती दी। समाज के सानिध्य की तुलना किसी से करने से अवष्य ही बचना चाहूंगा।

हो न हो यह मेरे अपनों का ही आशीर्वाद और प्रेम था कि अपने वंष के वंशावली जैसे जटिल काम को करने की सोच उपजी। सन् 2013, तब में 9 वीं का छात्र रहा था और उम्र 14। तब मेरे जेहन में अपनी वंश के इतिहास को समेटने की सोच उपजी। षायद यह इसलिए क्योंकि मेरे आम-बूबू व गांव के बुजुर्गों से उनकी मेहनतकश जिंदगी के किस्से, संघर्श, रहन-सहन संबंधी बातें अक्सर सुनने को मिलती रही थी। मैं यह सब जिज्ञासावश एकटक सुनता था। मानो उनके बहाने मैं अपने जड़ों से जुड़ रहा होऊं, मेरे अंदर रचनात्मकता का अंकुर पल रहा हो। जब भी कोई नयां किस्सा सुनने को मिले, जिज्ञासा और कुंलाचे मारती।

तो मैंने यहां जिगर लगाई थी कि मैंने 09वीं के दरमियान इस काम में हाथ डाल दिया था। अपनों से सुनी बातों से सोच तो उपजी थी कि वंशावली का काम किया जाना चाहिए पर पहले पहल मुझे कुछ समझ न आया। अड़चन यही कि वंशावली का यह काम कैसे किया जाए ? दिल में ललक तो ठैरी ही बस जूनून की जरूरत थी। वही जुनून जिसमें लंबी उड़ान भरनी थी। पहले पहल यह कल्पना से परे था कि इतनी लंबी उड़ान उड़ पाऊंगा कि वंशावली छप भी जाएगी। होते करते सफर चलता गया। शुरूआत में इस काम में बहुत अधिक परिश्रम था। यह परिश्रम तब और बढ़ता गया जब कुछ जानकारी मिलेगी इस आषा से किसी बूबू के पास जाऊं तो उन्हें अपने परदादाओं के नाम पता नहीं होते। चुनौती खड़ी थी कि अगर वंषावली पूरी तैयार करनी है तो हर व्यक्ति का नाम पता करना होगा और जब तक सभी के नाम न मिल जाएं तब तक उन-उन व्यक्तियों तक संपर्क स्थापित करना होगा जो आंखिरी व्यक्ति का नाम बता सकें। इस सफर में मुष्किल तब और बढ़ जाती जब व्यक्ति बाहर पलायन करके चल दिए हाें और उनके जो नए बच्चे हुए हैं उनकी संख्या और उनके नाम पता न हों। 

ठानी थी कि मैंने समग्रता से कार्य करना है और अधिक मेहनत के साथ भी। चूंकि अक्सर वंशावलियों में सिर्फ पुरूषों के नाम देखने को मिलते हैं, महिलाओं के नहीं यानी पत्नी और बेटियों के नाम के बिना। पर मैंने महिलाओं के नाम भी शामिल करने थे। अब मैंने ऐसे बंधुओं की तलाश करनी थी जिन्हें वंश के इतिहास के बारे में तनिक भी जानकारी हो और मैं जड़ तक पहुंच सकूं। जानकारी रखने वाले व्यक्ति को ढूंढना कठिन था। 

पढ़ाई के साथ-साथ एकतरफा वंशावली का कार्य भी चलता रहा। पूछते-गाछते जानकारी एकबट्याते रहा और महीने-साल गुजरते रहे। अपनों से लगातार संपर्क में बने रहना होता। जानकारी एकत्रित करने का जरिया- भेंट, फोन और सोशल मीडिया था। कुछ नया काम प्रस्तुत करने के लिए धरातल पर उतरना होता ही है। वंशावली निर्माण का यह कार्य दुष्कर तो था ही पर मन से किया गया यह काम कठिनाई का आभास न कराता था। कभी इतना मसगूल की थकावट का आभास न होता। फेसबुक मैसेंजर में ‘तुलेरा बंधु एक कुटुंभ’ नाम से वर्ष 2017-18 में एक ग्रुप भी बनया था। वहां 200 से अधिक तुलेरा बंधु जुड़े हैं। ऐसा ही एक ग्रुप वट्सऐप में भी बनाया। दोनों ग्रुप अभी भी अस्तित्व में हैं। पूछने-पाछने के रफ कार्य के पश्चात वंशावली को आंखिरी रूप और डिजाइन के लिए कुछ किताबें और इंटरनेट मेरे मार्गदर्शक रहे। 

माना इस वंशावली निर्माण पर मैं अपना हक जता भी दूं परंतु श्रेय के सच्चे हकदार मेरे वो बंधु व अपने लोग हैं जिन्होंने वंशावली निर्माण में तनिक भी मदद की, जो मुझे उज, तराण दिलाते रहे, मेरा हौंसला अफजाई, उत्साहवर्धन करते रहे। जो मेरे इस सफर में सच्चे दगड़ी बने रहे उन्हीं के बदौलत यह वंशावली हाथों में आ सकी। मेरी तो इसमें महज मेहनत और बुद्धी का ही इस्तेमाल हुआ ।



वैसे तो अपनों का भी क्या ही और किस मुंह से आभार किया जा सकता है भला। पर जिगर होना ही चाहिए कि वंशावली के लिए जानकारी देने में भूपाल सिंह तुलेरा पुत्र मोहन सिंह तुलेरा (सिरानी) ज्याबा के पास से जो जानकारी एकत्रित हुई उसके बाद बहुत अधिक मेहनत न करनी पड़ी। उन्होंने उलंग्रा (चमोली) से आए प्रथम पूर्वज रतन सिंह तुलेरा का नाम से लेकर उनके पुत्रों के नाम उम्र के अनुसार बताए और वंशावली का काम सुलभ होता चला गया। सलखन्यारी के ताऊ, बुबू लोगों का भी सहयोग मिला, दिल्ली में रहने वाले बंधुओं का भी सहयोग रहा, नौगांव के बंधुओं से भी मदद मिली। उलंग्रा (चमोली) के बिरादरों की जानकारी उलंग्रा के देव सिंह तुलेरा पुत्र दान सिंह तुलेरा की मदद के बिना तैयार न हो पाती। आर्थिक सहयोग के लिए भी कुछ बंधु आगे आए हैं। 

सच यह भी है कि जाति प्रथा के फेर में मैं बहुत पड़ता नहीं क्योंकि इस धरती पर जाति, धर्म, वर्ण से मानवता को जितने दुख-कष्ट व हानि हुई है यह जानकर मन डरचा भी है और पीड़ा भी होती है। मैं अपने को बड़भागी समझूंगा कि कि अपनी आठ पीढ़ी की वंशावली को बनाने व इसके इतिहास को संजोने का यह प्रयास कर सका हूं। सन 2019 में यह काम आंखिरी पड़ाव में पहुंच गया था। छपने का नंबर 2021 के आंखिरी के महिनों में आया है। कई साल के इस कठिन कार्य में अवश्य ही आपको कई गलतियां नजर आएंगी ही, कमियां तो खैर रह ही गई हैं। मैं यह भी दाव नहीं करूंगा कि जो भी जानकारी इस वंशावली में एकत्रित कर पाया हूं वो पूर्ण सही व सत्य है। किन्ही कारणों से कुछ बंधुओं के नाम अवष्य छूट गए हैं। कुछों के नाम गलत भी छपे होंगे। त्रुटियों हेतु आप लोग मुझे माफी के हकदार भी बनाएंगे। आगे कोशिश यही है कि अगले संस्करण में इन गलतियों व कमियों को अवश्य ही सभी बंधु मिलकर दूर करेंगे।

वंशावली का विमोचन ०३ नवंबर २०२१ को अपने गांव सलखन्यारी में गांव के बंधुओं के द्वारा हुआ।