ऐतिहासिक बग्वाल आज :- कुमाऊं में कभी 20 स्थानों पर होती थी बग्वाल, अब केवल दो, पढ़े पूरी खबर

अल्मोड़ा। जिले के ताकुला विकासखंड के ग्राम पाटिया में वर्षो से बग्वाल प्राचीन परंपरा चली आ रही है| प्रतिवर्ष यह बग्वाल गोवर्धन के दिन खेली जाती है ।जिसमें वास्तविक पाषाण युद्ध के अभ्यास का आयोजन स्थानीय ग्रामीणों द्वारा किया जाता है।


बग्वाल का अर्थ होता है , पत्थरों की बारिश या पत्थर युद्ध का अभ्यास। पत्थर युद्ध पहाड़ी योद्धाओं की एक विशिष्ट सामरिक प्रक्रिया रही है। महाभारत में इन्हे पाषाण योधि ,अशम युद्ध विराशद कहा गया है। जिस प्रकार वर्षाकाल की समाप्ति पर पर्वतों के राजपूत राजाओं द्वारा युद्धाभ्यास किया जाता था। ठीक उसी प्रकार छोटे -छोटे ठाकुरी शाशकों या मांडलिकों द्वारा भी वर्षाकाल की समाप्ति पर पत्थर युद्ध का अभ्यास किया जाता था जिसे बग्वाल कहा जाता था|
कहा जाता है कि चंद राजाओं के काल में पाषाण युद्ध की परम्परा जीवित थी। उनके सेना में कुछ सैनिकों की ऐसी टुकड़ी भी होती थी ,जो दूर दूर तक मार करने में सिद्ध हस्त थी। बग्वाली पर्व के दिन इसका प्रदर्शन भी किया जाता था। कुमाऊं में पहले दीपावली के दूसरे और तीसरे दिन बग्वाल खेली जाती थी ।इसलिए इस पर्व को बग्वाली पर्व भी कहा जाता है। पत्थर युद्ध पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा का महत्वपूर्ण अंग हुवा करता था। इसका सशक्त उदाहरण कुमाऊं की बूढी देवी परम्परा है।
कुमाऊं में प्रचलित एक कहावत -” दस दसैं बीस बग्वाल , कालिकुमु फूलि भंडाव ” के आधार पर देखे तो पता चलता है ,कि केवल कुमाऊं मंडल में ही बीस बग्वाल खेली जाती थी। अर्थात बीस स्थानों पर उत्सव रूप में पत्थर युद्ध का अभ्यास होता था। लेकिन अब केवल एक दो स्थानों ही बग्वाल रह गई है । जिसमे देवीधुरा की बग्वाल और पटिया की बग्वाल रह गई है।
आधुनिकता के इस दौर में इस आयोजन का स्वरूप छोटा होता जा रहा है आवश्यकता है इस आयोजन के संरक्षण और संवर्धन कर इसे प्रोत्साहित करने की।