उत्तराखंड का चुनावी तरकश -: पूरे भारत में आजादी के अमृत महोत्सव का रंग चढ़ा हुआ है और वही उत्तराखंड में इस रंग के साथ वासंतिक चुनावी रंग भी चढ़ा हुआ है। बसंत की बयार में राजनीतिक सरगर्मियां इस कदर बड़ी हुई है की सभी राजनीतिक दल और उनके योद्धा चुनावी रणक्षेत्र पर अपना परचम लहराने के लिए तैयार है । वही आदर्श आचार संहिता नकुश लगाने का काम कर रही है ताकि रण को नीतिगत तरीके से जीता जाए।
किंतु इस संहिता का सबसे बड़ा अवरोधक साबित हो रहा है आचार संहिता के क्रियान्वयन के दौरान जो दल बदल या जिसे पॉलिटिकल टर्नकोस्टिम कहा जाता है । 52 वा संवैधानिक संशोधन हो या 93 वा संवैधानिक संशोधन इनके तोड़ निकाले जा चुके है इस कारण इस राजनीतिक कदाचार पर रोक नही लगाई जा पा रही है। वही राजनीतिक दलों के शीर्षों के द्वारा 6 वर्ष के लिए निष्कासित भी किया जा रहा है लेकिन वो भी बेअसर होता दिखाई दे रहा है। वास्तविकता में देखा जाए तो यह चुनावी समीकरण को बिगाड़ने का काम करा रहा है और वही आम मतदाता का भी विश्वास खो रहा है। राज्यहित सर्वोपरि या स्वहित सर्वोपरि यह तथ्य एक मिथक बनकर रह गया है।
आदर्श की कसौटी पर लागू की गई आचार संहिता में इस प्रकार की दल बदल की पद्धति उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था का मखौल बनाने का काम करता है। साथ में पूर्व के उन राजनीतिक स्तंभों की ओर भी ध्यान खींचता है जिन्होंने अपने दल के प्रति हर स्थिति में अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण दिखाया है । वर्तमान में जिस कदर पार्टी हॉपिंग देखा जा रहा हैं वह सिद्धांतमूलक भारतीय राजनीति के ऊपर कुठाराघात जैसा है।
देखा जाए तो इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय चुनाव आयोग की रही है जिसने हमेशा से अंतर्राष्ट्रीय स्तर से भी अपनी पारदर्शी व्यवहार के लिए वाहवाही बटोरी है । चुनाव पूर्व तक वह पर्यवेक्षक व समन्वयक की भूमिका में है लेकिन आदर्श आचार संहिता के लागू होते ही उसकी शक्तियों में वृद्धि हो जाती है । तो क्यों न इस दौरान इस प्रकार के दल बदल को रोकने की भी शक्तियां सौंपी जाए । या फिर एंटी डिफेक्शन या दल बदल पर रोक लगाने हेतु एक सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में एक प्राधिकरण या ट्रिब्यूनल गठित किया जाए जो इन मामलों को तरजीह दे।
विजीगिशू सम्राट बनने के लिए सब मस्तक तैयार है पर राजतिलक के लिए वो धर्म नीति वाला मस्तक भी चाहिए जिसने सिद्धांतो को जिया है,अपने दल को जिया है , उसकी विचारधारा को जिया है।राजनीतिक कदाचार का दंश झेल रहा उत्तराखंड भी इसी दोराहे में है राज्य बनाम व्यक्तिगत हित । आइए इस चुनावी रणभूमि में उत्तराखंड राज्य को और उसके विश्वास को विजयी बनाए।
डॉ. केतकी तारा कुमैय्या (सहायक प्राध्यापक ,अल्मोड़ा)