समलैंगिक विवाह के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया नया आवेदन, दिया यह तर्क

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह के खिलाफ नया आवेदन दायर किया है| जिसमें केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर विचार करने पर सवाल उठाते हुए कहां है कि शादी एक सामाजिक संस्था है और इस पर किसी नए अधिकार के सृजन या संबंधों को मान्यता देने का अधिकार सिर्फ विधायिका के पास है और यह न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार में नहीं है|


साथ ही केंद्र ने यह भी कहा है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का व्यापक असर होगा और सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं पूरे देश की सोच को व्यक्त नहीं करती है बल्कि यह शहरी अभिजात वर्ग के विचारों को ही दर्शाती है| इसे देश के विभिन्न वर्गों और पूरे देश के नागरिकों के विचार नहीं माना जा सकता|


सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट याचिका की विचारणीयता पर विचार करे कि इन्हें सुना जा सकता है या नहीं| कानून सिर्फ विधायिका द्वारा बनाया जा सकता है न्यायपालिका द्वारा नहीं|
आवेदन में केंद्र सरकार ने कहा है कि याचिकाकर्ताओं ने एक नई विवाह संस्था बनाने की मांग की है, जो मौजूदा कानूनों की अवधारणा से अलग है| विवाह संस्था को सिर्फ सक्षम विधायिका द्वारा मान्यता दी जा सकती है|
बताते चलें कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 15 याचिकाएं दायर है| इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने इन याचिकाओं को 5 जजों की संविधान पीठ के समक्ष भेजने के निर्देश दिए थे| सुप्रीम कोर्ट 18 अप्रैल को इन पर सुनवाई कर सकता है|