बड़ी खबर -: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अब सहमति से तलाक लेने के लिए 6 माह की अनिवार्यता खत्म

अब हिंदू विवाह में सहमति से तलाक लेने के लिए 6 माह तक इंतजार करने की अनिवार्यता नहीं होगी| सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने अहम फैसला देते हुए कहा कि अगर पति-पत्नी के बीच सुलह की कोई गुंजाइश नहीं बचती है तो वह अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करते हुई किसी भी शादी को खत्म कर सकते हैं |


बता दें कि अभी तक ऐसे मामलों में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत छह माह की प्रतीक्षा अवधि अनिवार्य थी| सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि वैवाहिक संबंध बचाने की कोई उम्मीद ना होने पर शीर्ष अदालत की ओर से तलाक देना अधिकार का मामला नहीं, बल्कि विवेक का विषय है| दोनों पक्षों के लिए पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के मकसद से कई कारणों को ध्यान में रखते हुए इस अधिकार का बहुत ही सोच विचार कर और सावधानी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए|


अपने 61 पेजों के फैसले में कोर्ट ने कहा कि अगर आपसी सहमति हो तो 6 महीने की अनिवार्य विधि को भी समाप्त कर तलाक दिया जा सकता है| यह सार्वजनिक नीति के विशिष्ट या मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ नहीं होगा|
कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 शीर्ष अदालत को अधिकार देता है कि वह अपने सामने आए किसी भी मामले में पूर्ण न्याय के लिए आवश्यक आदेश दे सकती है| इस अनुच्छेद की उपधारा 1 में यह कहा गया है कि इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट की ओर से पारित डिक्री या दिया गया आदेश पूरे देश में नजीर बनेगा|
उन्होंने कहा कि शादी खत्म करने के लिए कोई भी पक्ष अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर नहीं कर सकता है|
इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल रहे|