
गरुड़ (बागेश्वर) l सूबे की सरकार पत्रकारों के हितों के लिए काम करने के मामले में अपनी पीठ खुद ही थपथपा रही हैl पर सच तो यह है कि सरकार की पत्रकार सम्मान पेंशन योजना के मानक जटिल होने के कारण अवकाश प्राप्त पत्रकार इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं l मानकों को व्यवहारिक बनाने की मांग को लेकर उन्होंने कई बार गुहार लगा दी है लेकिन आज तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हो सकी हैl पेंशन कम हो ज्यादा इसे वृद्धावस्था की लाठी ही कहा जाता हैl पिछली सरकारों ने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना जीवन खपा देने वाले पत्रकारों के लिए पेंशन सम्मान योजना बनाईl इस योजना के तहत वृद्ध पत्रकारों को पूर्व में पांच हजार रुपया प्रतिमाह पेंशन मिलती थीl तब अनेकों इस योजना से लाभान्वित हुए थेl वर्ष 2023 में सरकार ने एक ऐसा शासनादेश जारी कर दिया जिससे पत्रकार इस योजना से लाभ लेने से ही वंचित हो गए हैं l शासनादेश के अनुसार लाभार्थी को सूचना विभाग के राज्य या जिले से लगातार 15 वर्ष तक की मान्यता होनी चाहिए जबकि पुराने शासनादेश के अनुसार मान्यता पांच वर्ष ही निर्धारित थी l
दीगर बात यह है कि जिला स्तर पर एक अख़बार में एक ही पत्रकार को सरकारी मान्यता मिलती है जबकि वहां दो से अधिक पत्रकार अपनी लेखनी चलाते हैं पर शासनादेश में इस तरह के पत्रकारों को लाभान्वित करने का प्रविधान नहीं किया गया है l इस अव्यवहारिक शासनादेश से अब न तो मान्यता प्राप्त पत्रकार लाभान्वित हो पा रहे हैं औऱ न ही गैर मान्यता प्राप्त वृद्ध पत्रकारों को ही लाभ मिल पा रहा है l गत 22 मई को सूचना महा निदेशक ने सूबे के सूचना सचिव को शासनादेश में बदलाव को लेकर दिए गए सुझाव ने तो अवकाश प्राप्त पत्रकारों की समस्या दोगुनी कर दी है l पत्र में सूचना निदेशक ने लाभार्थी पत्रकार को लगातार सूचना विभाग के राज्य या जिला स्तर पर राज्य निर्माण से लगातार 10 वर्ष कम से कम 15 वर्षों की मान्यता होनी जरूरी की जाए l उल्लेखनीय है कि इस तरह के सुझाव से पत्रकार योजना का लाभ लेने से वंचित हो गए हैंl जिलों में अनेकों को राज्य निर्माण से पहले उत्तर-प्रदेश की मान्यता थी l राज्य निर्माण के बाद भी यह क्रम जारी रहाl अवकाश प्राप्त पत्रकार गणेश उपाध्याय का कहना है कि पूर्व में जारी शासनादेश हो या फिर गत मई महीने में सूचना निदेशक द्वारा शासनादेश में तब्दीली करने का सुझाव दोनों ही अव्यवहारिक हैं l पत्रकारों ने अपनी धारदार लेखनी से पृथक उत्तराखंड राज्य निर्माण की लड़ाई को मंजिल तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी l सरकार ने तत्कालीन पत्रकारों को राज्य आंदोलनकारी का दर्जा भी नहीं दियाl पत्रकार सम्मान निधि के तहत पेंशन देने की योजना बनाई तो सही पर इसमें भी मानक कठिन बनाकर उन्हें इस योजना से भी वंचित करने का कुचक्र रच दिया हैl कहा कि समस्या के समाधान के लिए स्थानीय विधायकों के साथ ही मुख्यमंत्री को व्यक्तिगत औऱ यूनियन के माध्यम से कई बार पत्र भेज दिए हैं किन्तु आज तक कोई सुनवाई नहीं हो सकी हैl उन्होंने मांग जल्दी पूरी न होने पर आपसी विचार विमर्श के बाद आगे क़ी रणनीति तैयार क़ी जाएगी l
पत्रकार सम्मान पेंशन योजना के तहत पत्रकारों के लिए मध्य प्रदेश में पत्रकारों को 20 हजार रुपया जबकि राजस्थान 15 हजार रुपया प्रतिमाह पेंशन मिल रही है l गत 26 जुलाई को बिहार के सीएम नितीश कुमार ने पत्रकारों क़ी पेंशन में बढ़ोत्तरी करके 15 हजार रुपया प्रतिमाह करने औऱ उनक़ी मृत्यु के बाद आश्रित पति या पत्नी को तीन हजार के बजाय 10 हजार प्रतिमाह पेंशन देने क़ी घोषणा क़ी है l मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पेंशन में पांच हजार रुपए के बजाए आठ हजार रुपया करने क़ी घोषणा क़ी थीl इससे राज्य के कुछ पत्रकारों को लाभ हुआ पर बाद में जारी शासनादेश में हुए बदलाव के कारण कई पत्रकार इस योजना से वंचित रह गए हैं l वरिष्ट पत्रकारों ने प्रदेश सरकार से इस ओर ध्यान देने की मांग की हैँ।
