बागेश्वर। प्रतिमाह की भाति इस बार भी अजीम प्रेमजी फाउंडेशन टीटबाजार गरुड़ के तत्वावधान में काव्य गोष्टी का आयोजन किया गया । इस बार काव्य गोष्टी से पूर्व प्रथम सत्र में समसामयिक परिचर्चा आयोजित की गयी । परिचर्चा का विषय संविधान में राम तय किया गया था ।
मुख्य वक्ता के रुप में साहित्यकार गोपाल दत्त भट्ट ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सबसे बड़े राम भक्त थे । गांधी विचारधारा में सर्व धर्म समभाव और सर्व स्पर्श भावना थी । जब महात्मा गांधी की हत्या की गयी थी उस वक्त भी उनके मुंह से राम ही निकला था । हमारा संविधान भी इन्हीं भावनाओं से ओत-प्रोत है । उन्होंने वर्तमान में राम के नाम पर आलग-अलग ढंग से की जा रही व्याख्या को गलत बताया।
अगले वक्ता के रुप में वरिष्ठ पत्रकार रमेश चन्द्र पाण्डेय ने कहा कि हमारी संविधान की प्रति बहुत बड़ी आस्था हैं । संविधान की गरिमा को ध्यान में रखते हुए हम सबका कर्तव्य है कि हम उसका आदर करें । आज की परिचर्चा का बिषय संविधान में राम रखा गया है इस पर मेरा मानना है कि हमारा संविधान राम राज्य की परिकल्पना को पूर्ण रुप स्वीकारता है । संविधान में सर्व धर्म समभाव,सबका आदर और अपने कर्तव्यों का पालन करना ही तो है। राम राज्य को मर्यादा के नाम से जाना जाता है जो वर्तमान में संविधान के रुप में ही तो है जिसमें अदृश्य रुप से ही सही मान-मर्यादा सर्व धर्म समभाव,सर्वादर,सुशासन और समानता है ।
परिचर्चा में ओम प्रकाश फुलारा, गिरीश चन्द्र अधिकारी,दिनेश सती,संजय सेमवाल,सुश्री प्रेमा भट्ट और प्रवेश नौटियाल ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किये ।
दूसरे सत्र में कुमांऊनी, गढ़वाली हिन्दी काव्य गोष्टी शुरु हुई । प्रेमा भट्ट ने अपनी हिन्दी रचना में कत्यूर घाटी के स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते कहा आज उन्हीं की गाथा सुनाऊ, सपूत कत्यूर घाटी के । साहित्यकार गोपाल दत्त भट्ट ने अपनी बहुत पुरानी रचना उपस्थित जनों की मांग पर दगड़ियों मुछ्यांव जगाओ,जो बैईया की बांह थमुछी, द्वार -द्वार जो किरण पुजूछी। कुमांऊनी कविता से सबका मन मोह लिया। पत्रकार रमेश चन्द्र पाण्डेय ने कुमांऊनी कविता में बाल साहित्य पर बचपन की शरारतों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा-सत्य नारायण कथा विचार,अलांण-फलांण दिन छू पंचमी,साररि परवार कैं सूजणौं बार, प्रस्तुत की । ओम प्रकाश फुलारा ने अपनी रचना हिन्दी में -चीर हरण आज गलियों में द्रौपदी का देखा है । अगले कवि दिनेश सती ने -जब मैं छोटा बच्चा था,जैसे छोटा सिक्का था । डा, गिरीश अधिकारी ने अपनी रचना में बचपन के दिनों को याद करते कहा -उन दिनों जब ईजा के पास मडुवा होता था । इसी प्रकार संजय सेमवाल और प्रवेश नौटियाल ने अपनी-अपनी रचनाएं प्रस्तुत की । दोनों सत्रों की अध्यक्षता बयोवृद्ध साहित्यकार गोपाल दत्त भट्ट ने एवं संचालन प्रवेश नौटियाल ने किया।