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अल्मोड़ा (द्वाराहाट)| रिस्कन नदी के आसपास के गांवों में पानी बोने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है|
इसके संयोजक मोहन कांडपाल इन दिनों वलना में चाल-खाल बनाकर पानी बोने में लगे हैं| उनका कहना है कि पलायन के कारण खेती करना लोगों ने छोड़ दिया है| इस कारण कई खेत बंजर हो गई है| वर्षा का पानी बंजर खेतों में रुकता नहीं है| सब गधेरों के माध्यम से बह जाता है| पहले जोते गए खेत जो पानी पीते थे वह कहीं ना कहीं जल स्रोतों में निकलता था| निराई-गुड़ाई से भी जमीन ढीली हो जाती थी| जिसके माध्यम से वर्षा जल जमीन के अंदर चला जाता था| इससे स्रोतों को लाभ होता था, लेकिन अब बंजर खेतों में कई जगह चाल-खाल खोदकर पानी बोने का प्रयास किया जा रहा है| अभियान के तहत मोहन कई गांवों में बैठकों के तहत ग्रामीणों को चौड़ी पत्ती वाले पौधे लगाने और चाल-खाल खोदने के लिए जागरूक कर रिस्कन को बचाने का प्रयास कर रहे हैं| उनका मानना है कि रिस्कन को बचाने के लिए जनता प्रयासरत है| करीब 40 किमी लंबी इस नदी को बचाने के लिए उन्होंने डीएम, मुख्यमंत्री जल शक्ति मिशन मंत्री भारत सरकार, प्रधानमंत्री भारत सरकार से भी अनुरोध किया है| इनसे प्रेरित ग्रामीणों ने पिछले 30 वर्षों में 5 से अधिक छोटे-बड़े चाल -खाल खोदे है| जिसके माध्यम से सैकड़ों लीटर पानी जमीन में जा रहा है|
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