उत्तराखंड के राज्य पशु कस्तूरा मृग विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए हैं| जिसका प्रमुख कारण कस्तूरा मृग की नाभि से मिलने वाली बहुमूल्य कस्तूरी है, लेकिन अब एक अच्छी खबर सामने आ रही है|
कहा जा रहा है कि अब कस्तूरा मृग की नाभि से उसको बिना मौत की नींद सुलाए भी बहुमूल्य कस्तूरी एकत्र किया जा सकेगा| इसकी पहल आयुर्वेदिक अनुसंधान संस्थान ने की है| वैज्ञानिक तकनीक से नाभि में चीरा लगाकर कस्तूरी एकत्र करेंगे|
कहा जा रहा है कि पुनः अगले 2 से 3 साल बाद फिर से उसकी नाभि में कस्तूरी एकत्र हो जाएगा|
दरअसल, कस्तूर मृग की नाभि में मिलने वाली कस्तूरी अपनी महक के लिए प्रसिद्ध है, साथ ही औषधीय गुणों से भी भरपूर मानी जाती है| इसकी उपयोगिता और मृग के अस्तित्व को बचाने के लिए अब आयुर्वेदिक अनुसंधान संस्थान रानीखेत के विशेषज्ञों ने पहल की है|
मिल रही जानकारी के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने बागेश्वर में मृग विहार स्थापित कर इसमें 14 कस्तूरी मृग को संरक्षण दिया है| शोध के बाद विशेषज्ञों ने जो तकनीक विकसित की उससे कस्तूर मृग का अस्तित्व बचा रहेगा| संस्थान कस्तूरी से कई जीवन रक्षक दवा तैयार करने के लिए झांसी स्थित संस्थान में शोध कर रहा है| भविष्य में इससे दिल के रोग सहित अन्य जीवन रक्षक दवाएं तैयार की जाएगी, जो आयुर्वेद में क्रांति ला सकती है|