
उत्तराखंड राज्य के जोशीमठ में हो रहे बेहिसाब भू- कटाव को देखते हुए अब सरकारी तंत्र चौकन्ना हो चुका है तथा जोशीमठ में हजारों की आबादी पर आए खतरे को देखते हुए नैनीताल जैसे संवेदनशील शहर पर मंडरा रहे खतरे को लेकर भी सरकारी तंत्र सावधान हो चुका है तथा वैज्ञानिकों के अनुसार नैनीताल की भार वर्ष 2011 में ही समाप्त हो चुकी है और यहां पर भार वहन क्षमता 50 से 60 हजार आबादी की है और इस खतरे को भांपते हुए जिला विकास प्राधिकरण ने प्राधिकरण क्षेत्र में बिना भूवैज्ञानिक रिपोर्ट के निर्माण पर पाबंदी के आदेश दिए हैं और यह भी निर्देश दिए हैं कि सख्ती से इसकी निगरानी की जाए। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल में 1993 में प्रोफेसर अजय रावत की जनहित याचिका पर शहर के अतिसंवेदनशील बलियानाला का ट्रीटमेंट युद्ध स्तर पर करने, नैनी झील को प्रदूषण मुक्त बनाने तथा क्षेत्र में दो मंजिला भवन की अनुमति प्रदान करने और नैनीताल में मल्टीस्टोरी निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन अलग राज्य बनने के बाद पहले झील विकास प्राधिकरण की दोषपूर्ण कार्य प्रणाली की वजह से नैनीताल में असुरक्षित व ग्रीनबेल्ट क्षेत्र में आवासीय व व्यवसायिक निर्माण की अनुमति दी गई थी। हाई कोर्ट भी यहां बेहिसाब निर्माण को खतरनाक करार दे चुका है और नैनीताल की भार वहन क्षमता 2011 में ही समाप्त हो चुकी हैं और यहां पर नियमों को तोड़कर निर्माण हो रहे हैं। नैनीताल में मंडलायुक्त व जिला विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष दीपक रावत के अनुसार डीडीए ने प्राधिकरण के पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण पर भूवैज्ञानिक की रिपोर्ट के बाद अनुमति देने का प्रस्ताव पारित किया है और अब सख्ती से यह अमल में लाया जा रहा है और इसकी मॉनिटरिंग भी की जाएगी।


