उत्तरायणी के शुभ अवसर पर हल्द्वानी से तारा पाठक की रोचक कविता, एक बार जरूर पढे…..

पिछ्याडि़ बारै उतरैणि में
हमार घुघुत काव नि ल्हिगोय।
कतु परेशानी आईं
कावोंल कतु अड़ंग देखाईं।
जब हमूंल काले कव्वा काले,
घुघुती माला खाले कै बेर
काव बलूण शुरू करौ
कावा बदाव घुघुती चड़ ऐ पड़ौ।
घुघुत बलाण-
पैंली तुम मनखीनैंल
हमार घोल उजाडी़।
जो बचि गिं उनन पर
कावन दिणौंछा सुपारि।
आपण बलूणौं ढंग बदवौ ।
हमन लै ज्यून रूण दियो।
फिर मैंल घुघुत कूण छोड़ि बेर कौ -काले कव्वा काले माला खाले।
उभतै दन्यारि में काव ऐ पड़ौ
फिर वील लै टेड़ी बेर कौ –
सबों है पैंली तुम मैंस
काले कूण छोड़ौ।
काले सुणन में हमन लै नक लागं।
केवल कव्वा कवौ।
फिर मैंल कौ –
ऐ जा कव्वा, ऐ जा।
माला खै जा।
कावैल फिर टोकौ –
माल केकि छ साफ साफ कवौ।
कैं गोलिनैं माल त न्हैं ।
मैंल फिर गलती सुदारी ,
हात जोड़ि बेर कौ –
श्रीमान कव्वा ऐ जा,
पकवानों माल खैजा।
काव जरा खुशि भौ और बलाणौं-
मांग जे मांगछै ।
मैंल कौ -ले कव्वा बड़,
मैंकैं दे सुनूं घड़।
कावैल कौ –
खवै बेर द्वि डबलौ बड़
हत्यूण चांछै सुनूं घड़।
आपण नानन चाउमिन, बर्गर
मैं कैं वी सालों पुराण बड़।
चलौ फिर लै बड़ खै ल्हिन्यूं ।
आपण मन बोत्यै ल्हिन्यूं।
म्यार मन में एक शंक छ ,
महंग है गीं गूड़, गैस और लै सामान।
तुमूल पकाई होल काच
और मत- मत पकवान।
के दुहर आॅप्सन सुणा।
मैंल कौ -ले कव्वा तलवार।
मैं कैं दे एकबटीण परवार।
काव बलाणौं –
यो त त्यारै हातै बात छ
मैं के करि सकूं।
त्यार रिसाई च्याल -ब्वारियन
मैं कसी मनूं ।
और के मांग-
मैंल कौ -ले कव्वा पुरी ,
मैं कैं दे सुनूं छुरी ।
कावैल कौ -सुनां दाम
पुजि गिं असमान,
के आर्टिफिसियल नि चलल?
मेरि और कावै आड़गुड़ि
सुणि रौछी पड़ोसी।
काव कैं मतकूण हुं वील कौ –
ले कव्वा लगड़, ऐजा म्यार दगड़ ।
ले कव्वा पुरी ,दगाड़ पि जा अँगूरी।
यस सुणौ, कावैल कौ –
जाड़ैल टैणी गयूं ।
पैंली द्वी घुटुक लगूं।
फिर देख जे मांगली ते दि द्यूं।
म्यर बलाई काव पाल भितेर न्हैगो।
हमर पकवान धरियौ धरियै रै गो।

   तारा पाठक