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लोग मुझसे कहते है अगर जरूरत के हिसाब से पैसा है तो इस दुनिया में हर चीज मिलती है
बोलते है इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में हर चीज बिकती है
लेकिन मैं नही मानता
क्योंकि में काफी समय सें अपनी बहुत सी चीजें लेकर बैठा हूँ
जो चुभती है मुझे
थोड़ा दर्द देती है मुझे
मैं तो कबसे आवाज दे रहा हूँ
पर आप खुद ही देखो ना यहाँ कुछ भी तो नही बिक रहा है
सब कुछ वैसा ही है जैसे पुराना सामान हो कोई
लोग तो बहुत आते है और शौक से देखते है और चले जाते है
मैं तो रोज प्रार्थना करता हूँ ना ईश्वर से
कि कुछ बिके तो
बिके तो अपनी जरूरतों का कुछ सामान ले लूँ
जिसे लेकर अपनी जिन्दगी खुशी से जी सकूँ
देखा जाए तो मेरी दुकान में बहुत कुछ है
मेरी थोड़ी सी बेचैनी है
जो बिके तो थौड़ा सा चैन खरीद लूँ
जाग के बितायी कुछ राते है मेरी
जो बिके तो नींद खरीद लूँ
बहुत सा दुःख भी है साथ मेरे
जो बिके तो थोड़ा सुख खरीद लूँ
खरीदनी थी थौड़ी सी रोशनी मुझे
इसलिए अपना अंधेरा साथ ही लाया हूँ
संभाल के रखें है कुछ ख्वाब मेरे
सोचता हूँ बदले में हकीकत खरीद लूँ
और भी बहुत कुछ है मेरे पास जो मेरा है
जैसे झूठे रिश्ते , झूठे लोग
टूटे सपने , अधूरा विश्वास
खामोश मेरा ख़ुदा
और पता नहीं क्या – क्या
लाऊंगा सब पर पहले पर जो लाया हूँ वो बिके तो
राकेश उप्रेती ✍️
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