
उत्तराखंड राज्य का प्रसिद्ध लोक पर्व हरेला हर वर्ष काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हरेला हरियाली और समृद्धि का प्रतीक है और इस अवसर पर जगह-जगह लोग वृक्षारोपण भी करते हैं। हर वर्ष कुमाऊं और गढ़वाल में हरेला बोया जाता है और उसके बाद कहीं पर 10 दिन में और कहीं पर 11 दिन में उसकी कटाई होती है। हर वर्ष लोग अच्छे से मिट्टी धूप में सुखाकर उसमें हरेला बोते हैं मगर इस बार बीते चार-पांच दिनों से हो रही बारिश के कारण लोग गीली मिट्टी में हरेला बोने के लिए मजबूर हैं। हरेले के संदर्भ में कूर्मांचल अखबार द्वारा कुछ बुजुर्गों के विचार जानें गए हैं जो कि इस प्रकार हैं –
1-सबसे पहले विचार हंसा फुलोरिया का सामने आया है जिनकी उम्र लगभग 90 वर्ष है। उनका कहना है कि इससे पहले हरेला बोने के दौरान मिट्टी को धूप में सुखाया जाता था और पिछली बार तक हरेले की मिट्टी सूखने के लिए जरूर धूप निकलती थी मगर इस बार पहली बार ऐसा हुआ है कि जब हरेला बोने के चार- पांच दिन पहले से ही बारिश हो रही है ऐसे में हरेला गीली मिट्टी में ही बोना पड़ेगा।
2- वही दूसरा विचार मोहनी देवी जिनकी उम्र 68 वर्ष है उनका कहना है कि इससे पहले तक यह मान्यता थी कि बारिश हरेला बोने की शाम को उसमें पानी देने के लिए होती थी लेकिन उससे पहले धूप रहती थी जिसमें हरेले की मिट्टी को सुखाया जाता था।
3- तीसरा विचार रमेश चंद्र पांडेय जिनकी उम्र 67 वर्ष है उनकी तरफ से सामने आया है, उनका कहना है कि हरेला बोने के एक दिन पहले मिट्टी को धूप में सूखने के लिए रख दिया जाता था और उसे अच्छे से छानकर उसमें पांच या सात अनाज हरेले के रूप में बोए जाते थे मगर इस बार हरेला बोने से 4- 5 दिन पहले से ही बारिश का दौर जारी है और ऐसे में अब गीली मिट्टी में ही हरेला बोना पड़ेगा।
