
प्रो. महेश्वर प्रसाद जोशी जो 1963 से वर्तमान तक मध्य हिमालय के पुरातत्त्व, इतिहास, संस्कृति एवं भाषा पर शोध कार्यरत हैं तथा इतिहास विभाग कुमाऊँ विवि के पूर्व अध्यक्ष तथा कुमाउं विवि के अल्मोड़ा कैंपस के डीन भी रहे हैं।
प्रो. जोशी भारत सरकार के केन्द्रीय पुरातत्त्व सलाहकार बोर्ड के सदस्य व हिमालयन रिसर्च बुलेटिन यूएसए के रिपोटिंग एडिटर भी रहे हैं तथा सिटे दला म्यूजी, पेरिस के पूर्व कंसल्टेंट व समन्वयक रहे हैं।
प्रो. जोशी दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र देहरादून के मानद फैलो हैं तथा विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय शोध प्रकाशनों में सौ से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। उनके 5 मौलिक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं।
लेखन अंतर्राष्टीय स्तर पर प्रो. जोशी का लेखन मौलिकता, सत्यसाधनीयता व विविधिता के लिए जाना जाता है।
इस बार प्रो. जोशी की नई पुस्तक आई है| प्रस्तुत पुस्तक ‘चारधाम यात्रा का मिथक एवं यर्थाथ’ चारधाम यात्रा में तीर्थाटन की आर्थिकी सहित अनेक विषयों की खोज व पड़ताल करती है।
इस पुस्तक की भूमिका पूर्व केन्द्रीय मंत्री, इतिहास, दर्शन व विज्ञान के जानकार प्रो. डाॅ. मुरली मनोहर जोशी ने लिखी है।
पुस्तक का प्राक्कथन पूर्व कुलपति कुमाउं विवि व दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सलाहकार प्रो. बी. के. जोशी द्वारा लिखा गया है।
पुस्तक का अन्तवाक् अमेरिका के प्रो. जेम्स जी लाॅख्तेफेल्ड द्वारा लिखा गया है।
इस पुस्तक में कुल नौ अध्याय हैं। जिन्हें लेखक द्वारा उत्तराखंड एवं तीर्थयात्रा, गंगोत्री एवं यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ, एडम्स की केदारनाथ-बदरीनाथ तीर्थयात्रा मार्ग रिपोर्ट 1913, देवभूमि से दैवीय आपदा भूमिः तीर्थाटन से पर्यटन, विकास एवं नियोजन, चित्रगुप्त की बही, इतिहास और इतिहासकार , निष्कर्ष और आपका विवेक में बांटा गया है।
प्रो. बी. के. जोशी के अनुसार, इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक के माध्यम से चारधाम यात्रा के आलोक में आधुनिक विकास की यर्थाथ्ता को उद्घाटित किया गया है। इस पुस्तक से हिमालय के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, पुरातात्विक व ऐतिहासिक पक्षों के साथ-साथ स्थानीय भूगोल व पर्यावरण विषयक कई अद्भुत जानकारियां प्राप्त होती हैं।
पुस्तक का मूल्य 550 रुपये है तथा इसका प्रकाशन समय साक्ष्य तथा दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र द्वारा किया गया है।
यह पुस्तक कुमाऊं विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति प्रोफेसर डीडी पंत, सामाजिक कार्यकर्ता तिलक राज कपूर एवं जगदीश त्रिपाठी को समर्पित है|
