“चलो आओ तुम्हें आज अपना अल्मोड़ा घुमाऊं मैं”…….. पढ़िए राकेश उप्रेती की स्वरचित कविता

💫 ” अल्मोड़ा “✍️
चलो आओ तुम्हें आज अपना अल्मोड़ा घुमाऊँ मैं,
अपने जिले से परिचित कराऊँ मैं,
कभी नंदा देवी तो कभी जागेश्वर धाम ले जाऊं मैं,
इन हसीन वादियों की सैर कराऊँ मैं,
वो नरेश दा की कुल्हड़ चाय पिलाऊँ मैं,
कभी न्याय के देवता चितई गोलू देवता तो कभी बिनसर महादेव ले जाऊं मैं,
कभी रानीखेत तो कभी सेराघाट के लिए रमेश दा कि बस में बैठाऊं मैं,
चलो आओ तुम्हें आज अपना अल्मोड़ा घुमाऊँ मैं,
कभी चार-पाँच किलोमीटर पैदल स्कूल जाने वाले बच्चों तो कभी सुबह 3: 00 बजे उठकर अपने सपनो की तैयारी करते हुए लड़कों को दिखाऊँ मैं ,
खेतों में काम करने वाले पुरुषों
व चूल्हे में काम करने वाली माताओं से बात कराऊँ मैं ,
कभी कॉलेज और घर दोनों का काम करने वाली बहनों से मिलाऊँ मैं ,
चलो आओ तुम्हें आज अपना अल्मोड़ा घुमाऊँ मैं,
वो गैराड़ गोलू देवता व
डोल आश्रम की कथा सुनाऊँ मैं , त्यौहार फूल देई, हरेला के बारे में बताऊं मैं,
वो मडुवे की रोटी , पिनालु का साग, भटिया डुबुक खिलाऊँ मैं,
वो दन्या आनन्द दा के पराठे,
अल्मोड़ा खीम सिंह मोहन सिंह की बाल मिठाई खिलाऊँ मैं ,
कोसी, सरयू नदी की सैर कराऊँ मैं ,
चलो आओ तुम्हें आज अपना अल्मोड़ा घुमाऊँ मैं,
ये हुड़का ये ढोल बजाना सिखाऊँ मैं,
अल्मोड़ा की विभिन्न हस्तियों के बारे में मैं बताऊँ मैं,
इतनी ही नहीं है अल्मोड़ा की खूबियां बाकी फिर कभी सुनाऊँ मैं ,
चलो आओ तुम्हें आज अपना अल्मोड़ा घुमाऊँ मैं।