चुनाव प्रचार के दौरान आम आदमी पार्टी ने मुफ्त की योजनाओं का वादा करने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ एक जनहित याचिका का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है| अपनी अर्जी में उसने कहा है कि मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली, मुफ्त परिवहन जैसे चुनावी वादे मुफ्त नहीं है क्योंकि यह योजनाएं असमान समाज में बेहद जरूरी है| पार्टी ने इस मामले में खुद को पक्षकार बताए जाने की भी मांग की है| पार्टी ने इस तरह की घोषणाओं को राजनीतिक पार्टियों का लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार बताया| आप ने याचिकाकर्ता को भाजपा का सदस्य बताते हुए उसकी मंशा पर भी सवाल उठाए हैं|
शीर्ष अदालत ने 3 अगस्त को केंद्र नीति आयोग, वित्त आयोग और आरबीआई जैसे हितधारकों से चुनाव के दौरान मुफ्त की योजनाओं का वादा करने के मुद्दे पर विचार करने और इससे निपटने के लिए रचनात्मक सुझाव देने को कहा था| अदालत ने इस मुद्दे से निपटने के लिए सरकार को उपाय सूजाने के लिए एक तंत्र स्थापित करने के आदेश दिए थे|
बताते चलें कि पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने गैर जरूरी मुफ्त योजनाओं से अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान पर चिंता जताई, राज्यों पर बकाया लाखों करोड़ों रुपए के कर्ज का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले के समाधान के लिए एक कमेटी बनाने के संकेत दिए|
वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई कि चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त की योजनाओं की घोषणा को मतदाताओं को रिश्वत देने की तरह देखा जाए| चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ऐसी घोषणा करने वाली पार्टियों की मान्यता रद्द करें|